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________________ १३८ पोश नेभा अधोलोक अर्धमृदंगके समान, मध्यलोक झल्लरीके भाकारमें है। और अवलोक पूर्ण खड़े हुए मृदंगके समान है। अब समझ गये न ? तीन लोकके विस्तारको रज्जुनामक प्रमाणसे हम अब कहेंगे। एक समयमें असंख्यात योजन प्रमाण जानेवाला देव विमान सतत असंख्यात वर्षतक रात्रिदिन जावे तो जितना दूर जा सकता है, उस प्रमाणका नाम एक रज्ज है। लोकके नीचेसे आखिरतक चौदह रज्जु प्रमाण दक्षिणोतर भागमें नीचे ७ रज्जु है बीचमें एक रज्जु, कल्पवासी विमानोंमें पांच रज्जु, और आखिरको एक रज्जु प्रमाण है। इस प्रकारके प्रमाणसे युक्त लोकमें षड्दव्य खचाखच भरे हुए हैं । हे भव्य ! अब उनके स्वरूपको हम कहेंगे । ध्यान देकर सुनो। बीच में ही रविकोतिराजने प्रश्न किया कि स्वामिन् ! आपने जो निरूपण किया वह सभीके समझ में आया । परन्तु एक निवेदन है । वायु तो चचल है । वह एक जगह ठहर नहीं सकती है, फिर उसके साथ यह लोक कपित क्यों नहीं होता है, यह समझ में नहीं आया । कृपया यह निरूपण होना चाहिये। भव्य ! बायुमें एक चलवायु, एक निश्चलवायु इस प्रकार दो भेद हैं। चल वायु तो लोकमें इधर उधर व्याप्त है, परन्तु ये तोनों वायु चलवायु नहीं हैं, स्थिर वायु हैं। शीतलता, निस्संगत्व, सूक्ष्मत्व आदि गुणों में तो कोई अन्तर नहीं, चलवायुमें कंपन है, स्थिरवायुमें कंपन नहीं है । इतना ही भेद है। स्वर्गलोकमें स्थिर विमान चलबिमान, इस प्रकार दो प्रकारके विमान विद्यमान हैं। उनके नाम आदिमें कोई भेद नहीं है। सबके नाम समान है इसी प्रकार स्थिर वायु और चलवायुका नाम सादृश्य होनेपर भी चलाचल का भेद है। ताराओंमें भी एक स्थिर तारा, और एक चल तारा इस प्रकारके भेद हैं । स्थिर तारा चलती नहीं, चल तारा तो इधर उधर जाती है । इसो प्रकार बातमें भी भेद है। स्वामिन् ! मेरी शंका दूर हुई । अब छह द्रव्योंके आगे वर्णन कीजिये। इस प्रकार विनयसे मंदस्मित होकर रविकीतिराजने प्रार्थना की। उत्तरमें भगवंतने कहा कि हे भव्यजीव ! सबसे पहिले जीव पदार्थका वर्णन करेंगे। पहिले जो दस प्राणोंके साथ जो जीता रहा है, जीता आरहा है, जो रहा है और आगे जीयेगा उसे जीव कहते हैं। वे १० प्राण कौनसे हैं। मन,
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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