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भरतेश वैभव 'दृष्टं जिनेन्द्रभवन इत्यादि सन्चारण करते हुए एवं पाणिभ्यतीर्थनायक जय जय आदि भगवंतकी स्तुति करते हुए आगे बढ़े।
समवशरणको देखनेपर मालूम हो रहा था कि घाँदीके पर्वतके ऊपर इन्द्रधनुषका पर्वत खड़ा हो । तथापि वह उस चांदी के पर्वतको स्पर्श न कर रहा है । आश्चर्य है। ___ रूप्यगिरीके ऊपर नवरत्न गिरीको स्थापना किमने की होगी? सचमुचमें जिनमहिमा गोप्य है ! इत्यादि प्रकारसे विचार करते हुए वे कुमार अविलम्ब जा रहे हैं।
तीन लोकको समस्त कान्ति एकत्रित होकर तीन लाकसे प्रभु आदिभगवंतके पुरमें ही आ गई हो, इस प्रकार उस समवशरणको देखनेपर मालूम होता था, आनन्दसे उसका वर्णन करते हुए ये जा रहे हैं।
अन्दर आठ परकोटोंसे वेष्टित धलीसाल नामक मजबत परकोटा दिख रहा था। वह नवरत्नकी कान्तिसे इन्द्रचापफे समान मालम हो रहा था। वहाँपर चारों दरवाजोंके अन्दर अत्यन्त उन्नत गगनस्पी सुवर्णसे निर्मित चार मानस्तंभ हैं, उसमेंसे एक मानस्तंभको उन कुमारोंने देखा।
उस धूलीसाल परकोटेके मूलपार्श्वमें एक हस्तप्रमाण छोड़कर रजताद्रि है, अर्थात् पर्वतको समवशरण स्पर्श करके विराजमान नहीं है, एक हस्त प्रमाण अन्तर छोड़कर है। वहाँसे पुनश्च पाँच हजार धनुष उन्नत है जिसे चढ़नेके लिए सोपानपंक्तिकी रचना है।
पर्वतके अपर धुलीसालतक आधा कोस दूर है, जोरसे मावाज देनेपर सुननेमें आ सकता है, तथापि इतने में बीस हजार सोपानको व्यवस्था है। परन्तु वहाँपर बीस हजार सीढ़ियोंको क्रमसे चढ़नेकी जरूरत नहीं है। पहिली सीढ़ी पर पैर रखते ही वहाँके पादलेपन के प्रभाव क्षणमात्रमें एकदम अन्तिम सीढ़ीपर जाकर खड़े हो जाते हैं, समवशरण व जिनेन्द्रका दर्शन करते हैं। यह वहाँका अतिशय है। ___भरतकुमार जो अभीतक कुछ दूर थे उस सोपानपंक्तिके पास आये, .
और सीढ़ीपर पैर रखते ही ऊपर धूलोसालमें पहुंच गये। सबके मुखसे जिनशरण, जिनशारण शब्दका उच्चारण सुननेमें आ रहा है। ___ दरवाजेमें रलदंडको हाथमें लेकर द्वारपालक खड़े हैं । द्वारपालकोंके पादसे मस्तकतक उनका शरीर आभरणोंसे भरा हुआ है। ऐसे उद्दष्ट द्वारपालकोंकी अनुमतिको पाकर सभी कुमार अन्दर प्रविष्ट हुए। वहाँ
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