SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 587
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरतेश वैभव पर उन्नत मानस्तंभके एक पार्श्वमें ही सुवर्णकुण्डमें जल भरा हुआ था। वहां पैर धोकर आगे बढ़े। __ आगे जाते हुए उन परकोटोंके दरवाजेमें स्थित द्वारपालकोंकी अनुमति लेते हुए एवं इधर उधरकी शोभाको देख रहे हैं। कान्तिके समुद्र में ही चल रहे हैं अथवा शीतल नदीमें डुबकी लगा रहे हैं, इसका अनुभव करते हुये कांतिमय व सुगंध समवशरण भूमिपर वे आगे बढ़ रहे थे। आठ परकोटोंके मध्यमें स्थित सात वेदिकाओंको पारकर स्फटिक मणिसे निर्मित आठवें परकोटेमें वे प्रविष्ट हुए। लावण्यरस, योग्यशृंगार योग्य वेभवसे युक्त सुंदर इन कुमारोंको भगवंतकी ओर आते हुए देवेन्द्रने देखा। सोचेमें उतार दिया हो इस प्रकारका सादृश्यरूप, सुवर्णके समान देहकांति, भरी हुई जवानी आदिको देखकर उनके सौन्दर्यसे देवेन्द्र एकदम आश्चर्यचकित हुआ। गमनका गमक, बोलने व देखनेकी ठीवी, आलस्यरहित पटुत्व, विनय व गाम्भीर्यको देखकर देवेन्द्र आकृष्ट हुमा । आंखोंको कांति, दत पक्तिकी कांति, सुवर्णाभरणोंकी कांति, शरीर. की कांति, रत्नाभरणोंको कांति, शरीरकी कांतिके मिलनेपर वे ज्योतिरंग पुरुष मालूम हो रहे थे । देवेन्द्र आश्चर्यसे अवाक् हो गया व मनमें विचार करने लगा। "ये कोन हैं, स्वर्गलोकमें तो कभी इनको देखा नहीं, मर्त्यलोकमें ऐसे सुंदर कुमार पैदा हो नहीं सकते। यदि हए तो भी एक दो को ही ऐसा रूप मिल सकता है, फिर ये कौन हैं ? आश्चर्य है ! इससे वह सुन्दर है, उससे यह सुंदर है। इन दोनोंसे वह सुंदर है। वह यह क्यों कहें ये तो सभी सुन्दर ही सुन्दर हैं। फिर लोकमें ये कौन हैं।" इत्यादि प्रकारसे मनमें विचार करनेपर अवधिज्ञानके बलसे देवेन्द्र समझ गया कि ये तो भरतेश्वरके कुमार है । उस राजरत्नको छोड़कर ये कुमाररत्न और जगह उत्पन्न नहीं हो सकते हैं। त्रिलोकीनाथका पुत्र भरतेश है। उस रत्नशलाकाकी खानमें ये कुमाररत्न उत्पन्न नहीं हुए तो और कहाँ होंगे ? भरतेश ! तुम धन्य हो । इस प्रकार देवेन्द्रने मस्तक हिलाया। इधर देवेन्द्र विचार कर रहा था। उधर वे कुमार आगे बढ़कर नौ परकोटेके अन्दर प्रविष्ट हुए। वहाँपर क्या देखते हैं। तीन पीठ के ऊपर सिंहके मस्तकपर स्थिर कमल है। उसे स्पर्श न करके सुजानकरहक भगवान विराजमान हैं।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy