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________________ १३० भरतेश वैभव स्तुति करते हैं। और कभी आदिजिनेश, आदिब्रह्मा, आदीश्वर आदि वस्तु आदि मध्यान्तको पाकर भी उसे स्पर्श न करनेवाला, महादेवके नामसे कहते हैं। __ इसी प्रकार भाई ! देवगण अनेक नामोंसे भगवंतका उल्लेख कर भक्तिसे उनकी स्तुति करते है। इन सब बातोका आप लांग अपनो आँखोंसे देखेंगे। मैं क्या वर्णन करूं, इस प्रकार रविराजने कहा । इस प्रकार रविकीतिकुमार जिस समय समवशरणका वर्णन कर रहा था उस समय बाको कुमारोंमें कोई हूँ, कोई जी, कोई वाह ! इत्यादि कहते हुए आनन्दसे उस पर्वतपर चढ़ रहे थे। कोई कहने लगे कि भाई ! आपने बहुत अच्छा कहा ! पहिले एक दफे आपने भगवंतका दिव्य दर्शन किया है, इसलिए आप अच्छी तरह वर्णन कर सके । परन्तु हम लोगोंको आपके वर्णन कौशलसे साक्षात् दर्शनके समान आनन्द मिला। __ आपने जा वर्णन किया उससे हमें एक बारके दर्शनका पूर्ण अनुभव हुआ 1 इसलिए हमारा अब जो दर्शन होगा वह पुनदंशन है। भाई ! हम लोग आज धन्य हैं। बीरंजयकुमारने आपसे प्रश्न किया। आपने प्रेमके साय वर्णन किया, सस्ता बहुत सरलताके साथ तय हुआ। विशेष क्या? समवशरणको आंखों देखने के समान आनन्द हुआ। हा ! नूतन दर्शनके लिए हम आये थे। परन्तु हमारे लिए पुरातन दर्शन ही हुआ । रविकीतिकुमारके चाक्चातुर्यका वर्णन क्या करें । कमाल है। वचनको गम्भीरता, कोमलता, जिनसभाको वणन करनेकी शैलो इत्यादि इसके सिवाय दूसरोंको नहीं मिल सकती है, इस प्रकार वे विचार करने लगे। शिष्यगण गुरुओंका आदर करते हए जिस प्रकार जाते हैं, उसी प्रकार भगवंतके दिव्यचारित्रको वर्णन करनेवाले रविकोति कुमारके प्रति आदर व्यक्त करते हुए वे कुमार उस पर्वतपर चढ़ रहे हैं। "भाई देखो ! आगे रत्नशिलाको राशि है, पैरकी लगेगा । सावकाश ! यहाँ फूल है। होशियार !" इत्यादि आदरके साथ कहते हुए वे कुमार ऊपर बढ़ रहे हैं! __ क्या ही आश्चर्यकी बात है। कथा कहने व सूननेमें खण्ड नहों पड़ा और दृष्टि मो मार्गमें बराबर थी। इस प्रकार वे शिथिलकर्मी अपने चित्तको स्थिर कर कर्ममथन भगवंतके दर्शन के लिए उत्कठित होकर उस पर्वतपर पढ़ रहे हैं। ننننننت تعتقلاة
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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