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भरतेश वैभव __ समवशरणकी जमीन तो इन्द्रनीलमणिसे निर्मित है, परन्तु वहाँका गोपुर, द्वार, वेदिका, परकोटा आदि तो नवरत्न व सुवर्णसे निर्मित हैं, इसलिए अनेक मिश्मे मृगोभित होते हैं।
इन्द्रगोपसे निर्मित यह क्षेत्र तो नहीं है ? अथवा इन्द्रचापसे निर्मित भूमि है ? इस प्रकार लोगोंको आश्चर्यमें डालते हुए चन्द्रार्ककोटि प्रकाशसे युक्त जिनेन्द्र भगवंतकी नगरी सुशोभित हो रही है । __ अम्बर (आकाश) रूपी समुद्र में स्थित कदंब वर्णके कमलके समान वह समवशरण सुशोभित हो रहा है। उसका प्रकाश दशों दिशाओं में फैल रहा है । इसलिए प्रकाश मण्डलको बीच वह कदम्बवणके सूर्य के समान मालूम होता है। भाई ! विशेष क्या कहूँ ? वह समवशरण उष्णतारहित सूर्यबिम्बके समान है। कलंकरहित चन्द्रबिम्बके समान है। अथवा पर्वतराजके लिए उपयुक्त दर्पणके समान है, इस प्रकार आदिप्रभुका पुर अत्यन्त सुन्दर है।
अपनी कान्तिसे विश्वभर में व्याप्त होकर समुद्र में एक स्थानमें ठहराये हए नवरत्न निर्मित जहाजके समान मालूम होता है।
जिस समय उनका आकाशमें विहार होता है उस समय प्रकाशरूपी समुद्रमें जहाजके समान मालूम होता है, और जहाँ ठहरनेका होता है वहाँ ठहर जाता है, जैसा कि नाविककी इच्छानुसार जहाजकी गतिस्थिति होती है। ___ पुण्यात्माओंके पुण्यबलसे तीर्थ करका विहार उनके प्रान्तको ओर हो जावे सो पुण्यके समान वह भी उनके पीछे ही आ जाता है। जब भगवत कैलासपर विराजते हैं वह भी वहींपर आकर ठहर जाता है।
भाई ! जिस प्रकार कोई वाहनको एक जगहसे दूसरी जगहको चलाते हैं उस प्रकार भगवान् तो एक बड़े नगरको ही एक जगहसे दूसरी जगहको ले जाते हैं । क्या इनकी महिमा सामान्य है ? __चारों दिशाओंसे रलसोपान निर्मित है । और रत्नसोपानको लगकर वह जिननगर विराजमान है। ऐसा मालूम होता है इस कैलासपर्वतके ऊपर नवरलमय एक पर्वत हो खड़ा हो।
भाई ! उस समवसरणके ९ प्राकार मौजूद हैं। उनमें एक तो नवरत्नसे निर्मित है। एक माणिक्यरत्नसे निर्मित है। और पाँच सुवर्णसे निर्मित हैं। और दो स्फटिकरलसे निर्मित हैं। इस प्रकार ९ परकोटोंसे