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भरसेश वैभव
११३ वे जिस समय जा रहे थे मार्ग में अनेक नगरों में प्रजाजन पूछ रहे थे कि स्वामिन् कहाँ पधार रहे हैं ? उत्तरमें वे कुमार कहते हैं कि कैलास पर्वतपर यादिप्रभु के दर्शनके लिए जा रहे हैं । पुनः वे पूछते हैं कि चलते हुए क्यों जा रहे हैं । वाहनादिको ग्रहण कोजिये । उत्तरमें वे कहते हैं कि मगवन्तका दर्शन जबतक नहीं होता है तबतक मार्ग में हमारा वैसा ही नियम है । इसलिए वाहनादिक की जरूरत नहीं है।
इस समाचार को जानते ही प्रजाजन आगे जाकर सर्व नगरवासियोंको समाचार देते थे कि आज हमारे स्वामीके कुमार केलास वंदनाके लिए जाते हैं। इस निमित्त उनका सर्वत्र स्वागत हो, और ग्राम नगरादिफको शोभा करें। इस प्रकार सर्वत्र हर्षसे उत्सव मनाये जाने लगे। __स्थान-स्थानपर उन कुमारोंका स्वागत हो रहा है, नगर, नौदर, महल वगैरह सजाये गये हैं। प्रजाजनोंको इच्छानुसार अनेक मुकामोंमें विश्नांति लेकर वे कुमार केलास पर्वतके समीप पहुंचे। ___ भरतेश्वरके सुकुमारोंको चित्तवृत्ति को देखकर पाठकोंको आश्चर्य हुए बिना न रहेगा | इतने अल्पवय में भी इतने उच्चविचार, संसारभोक्ता, वैराग्यसम्पन्न विवेक पुण्यपुरुषोंको हो हो सकता है | काम क्रोधादिक विकारोंसे उत्पन्न होनेके लिए जो साधकतम अवस्था है, उस समय यात्मानुभव करके योग्य शांतविचारका उत्पन्न होना बहुत ही कठिन है। ऐसे सुपुत्रोंको पानेवाले भरतेश्वर धन्य हैं। यह तो उनके अनेक भवो. पाजित सातिशय पुण्य का ही फल है कि उन्होंने ऐसे विवेकी ज्ञानगुण सम्पन्न सुपुत्रोंको पाया है, जिन्होंने बाल्यकालमें हो ससारके सारका अच्छी तरह ज्ञान कर लिया है। इसका एकमात्र कारण यह है कि भरतेश्वर सदा सद्रूप भावना करते हैं।
हे परमात्मन् ! आप सुझानस्वरूपी हैं। सुशान हो आपका शरीर है। सुभान ही आपका श्रृंगार व भूषण हैं। इसलिए हे सुझानसूर्य ! मेरे अंतरंग में सवा बने रहो।
हे सिद्धारमन् ! आप मुक्सिलक्ष्मीके अधिपति हैं, जानके समुद्र हैं। विख्यगुणोंके आधारभूत हैं। ममनेके लिए अगोचर हैं। तीन लोकके अधिपति हैं। सूर्य के समान उज्ज्वल प्रकाशसे युक्त हैं। इसलिए हे निरंजनसिद्ध ! मुझे सन्मात प्रशन कोजिये।
इति विरक्तिसंधिः