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भरतेश वैभव अग्नि, आयुष, गेग वगैरहकी बाधायें शारीरको होती है। आत्माको नहीं। आत्मा शरीरमें आकाशके रूपमें पुरुषाकार होकर रहता है। यह शारीर नाशशील है । आत्मा अविनश्चर है। शरीर जज स्वरूप है। आत्मा चेसास स्वरूप है। शरीर भूमिके समान है 1 आत्मा आकाशके समान है । इस प्रकार आत्मा और गैर परस्पर विरुद्ध पदार्थ हैं।
आकाश निराकार रूप है, आत्मा भी निराकार रूप है, आकाशा पुरुषाकार रूपमें नहीं है और ज्ञान मी आकाशको नहीं है, इतना हो आकाश और आत्मामें भेद है।
अम्ब के समान इस आत्माको शरीर नहीं है। चिद्रूप इसका स्वरूप है और सुन्दर पुरुषाकार है । इस प्रकार तीन चिड होनेसे इस आत्माका नाम चिदम्बरपुरुष ऐसा पर गया । यह शरीर कारागृहवास है, यह आयुष्य हपवाड़ी है | बुढ़ापा जन्म-मरण, आदि अनेक बाधायें बहाँ होनेवाले अनेक कष्ट हैं। अपने महत्वपूर्ण स्वरूपको न समझकर यह आत्मा व्यर्थ ही इस शरीरमें कष्ट उठा रहा है । यह बड़े दुःखको बात है।
यह मात्मा तीन लोकके समान विशाल है और तीन लोकको अपने हायसे उठानेके लिए समर्थ है। परन्तु कर्मवश होकर बीजमें छिपे हुए वृक्षके समान इस जड़ देहमें छिपा हुआ है। आश्चर्य है । ___ तोन लाकके अन्दर व बाहर यह जानता है व देखता है। और करोड़ सूर्य व चन्द्रमाके समान उज्ज्वल प्रकाशसे युक्त है। परन्तु खेद है कि बादलसे ढके हुए सूर्यके समान कर्मके द्वारा उका हुआ है। ___ यह आत्मा शरीरमें रहता है, परन्तु उसे कोई शरीर नहीं है । उसे कोई शरीर है तो ज्ञानरूपी ही शरीर है । शरीरमें रहते हुए धारारको वह स्पर्श नहीं करता है । परन्तु शरीरमें वह सर्वाग व्याप्त है। __कमलनालमें जिस प्रकार उसका डोरा नोधेसे कार तक बगवर भरा रहता है उसी प्रकार यह आत्मा इम शरीरमें पादांगुष्ठमे लेकर मस्तकतक सागमें भरा हुआ है । कमलनालमें वह डोग नीचेसे ऊपर तक रहता है । परन्तु मूल व पत्ते में वह डोग नहीं रहता है । इमो प्रकार यह आत्मा इस पारी रमें पादसे लेकर मस्तकतक सर्वांग व्याप्त रहता है। परन्तु नख और केशमें यह नहीं है।
शरीरके किसी भी प्रदेशमें स्पर्श किया या चिमटो ली तो मट मालम होता व वेदना होती है अर्थात् यहाँ आस्मा मौजूद है, परन्तु नख केशके