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________________ भरतेश वैभव उसी समय एक कुमारने गरुडगांधारी नामके रागको लेकर गायन किया तो वे सर्प इधर-उधर भाग गये। और आकाशसे गद्ध पक्षो आकर उस गायनको सुनने लगे। विशेष क्या ? उस जंगलमें स्थित कोयल, तोता, मोर व अनेक प्राणो कान देकर स्तब्ध होकर उनके सुन्दर गायनको सुन रहे हैं। स्वरमंडलमें किन्नरियोंमें एवं विविध वीणामें अनेक प्रकारके रागालापको वे करने लगे। अत्यन्त सुन्दर उनका स्वर है, सुन्दर राग है, नान भी सुन्दर है, आलाप भी सुन्दर है और गानेवाले उससे भी बढ़कर सुन्दर हैं, उनकी बराबरी कोई भी नहीं कर सकता है। केतारगौळमें, एवं उसरगर में आदि कातने मासिका नाश जिस क्रमसे किया उसका चातुर्यके साथ वर्णन किया । बोधनिधान भगवान आदिनाथ स्वामीके केवलज्ञानके वर्णनको कांबोधि रागसे गायन किया । सुन्दर दिव्यध्वनिको मधुमाधवी रागसे वर्णन किया। शुद्ध रागोंसे जिनसिद्धोंकी स्तुति कर उनको निबद्ध कर, शद्ध संकीर्ण रागके भेदको जाननेवाले उन कुमारोंने संकीर्णगसे वृद्ध सम्पन्न योगियोंका वर्णन किया। छह द्रव्य, पंच शरीर, पंच अस्तिकाय, सात तत्व, नो पदार्थ इनको वर्णन कर, इनमें एकमात्र आत्मतत्व ही उपादेय है। इस प्रकार चितुद्रव्यका बहुत खूबीके साथ वर्णन किया। पाषाणमें सुवर्ण है, काष्ठमें अग्नि है, दूध पी है, इसी प्रकार इस शरीरमें आत्मा है। पाषाणमें कनक हे यह बात सत्य है । परन्तु सर्व पाषाणमें कनक नहीं रहता है। सुवर्णपाषाणमें दिखनेवाली कान्ति वह सुवर्णका गुण है । काष्ठमें दिखनेवाला काठिन्यगुण अग्निका स्वरूप है। दूधमें दिखनेवाली मलाई वह घोका चिह्न है। इसी प्रकार इस शरीरमें जो चेतन स्वभाव और ज्ञान है वही आत्माका चिह्न है। फिर उसी पत्थरको शोषन करनेपर जिस प्रकार सुवर्णको पाते हैं, दूधको जमाकर मंथन करनेपर जिस प्रकार धीको पाते हैं, एवं काष्ठको जोरसे परस्पर घर्षण करनेपर अग्नि जिस प्रकार निकलती है उसी प्रकार यह शरीर भिन्न है, मैं भिन्न हूँ, यह समझ कर भेदविज्ञानका अभ्यास करें तो इस आत्माका परिज्ञान होता है। कहनेका तात्पर्य यह है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यश्चारित्रके क्रमसे तद्प ही आत्माका अनुभव करे तो इस चिद्रूपका शीघ्र परिज्ञान हो सकता है। वह आत्मा पानीसे भीग नहीं सकता है, अग्निसे जल नहीं सकता है, किसी भी खड़गकी तोक्ष्णधारको भी वह मिल नहीं सकता है । पानो,
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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