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________________ भरतेश वैभव स्पर्श करनेपर या चिमटी लेनेपर मालम नहीं होता है व वेदना भी नहीं होती है अर्थात् उस संशमें आत्मा नहीं है। कमलनाल जैसा जैसा बढ़ता जाता है उसी प्रकार अन्दरका डोरा भी बढ़ता ही रहता है। इसी प्रकार बाल्यकालसे जब यह शरीर बनकर जवानी में आता है तो वह आत्मा भी उसी प्रमाण से बढ़ता है। कमलनाल, गंदला कंटकयुक्त, होकर, कठोर जरूर है। परन्तु अन्दरका वह डोरा मृदु निर्मल व सरल है। इसी प्रकार अत्यन्त अपवित्र रक्त, चर्म, मांस हड्डो आदिसे इस शरीर) आत्मा रहनेपर भी वह स्वयं अत्यन्त पवित्र है। बाहरका यह शरीर सप्तधातुमय है। इसके अन्दर और दो शरीर मौजूद हैं। उन्हें तैजस व कार्माण कहते हैं। इस प्रकार दो परकोटोंसे वेष्ठित कारागृहमें यह आत्मा निवास करता है । सप्तधातुमय शरीरको औदारिकके नामसे कहते हैं । परन्तु अन्दरका शरीर कालकूट विषके समान भयंकर है। और वह अष्टकर्म स्वरूप है। मनुष्य, पक्षि, पशु आदि अनेक योनियोंमें भ्रमण करते हुए इस आत्माको औदारिकशरीरकी प्राप्ति होती है । परन्तु तेजस कामणिशरीर इस मरण होनेपर भी इसके साथ ही बराबर लग कर आते हैं। ___ इस पर्यायको छोड़कर अन्य पर्यायमें जन्म लेनेके पहिले विग्रहगतिमें जब यह आत्मा गमन करता है उस समय उसे तेजस फार्माण दोनों शरीर रहते हैं। परन्तु वहाँपर जन्म लेनेपर और एक शरीरको प्राप्ति होती है। इस प्रकार इस आत्माको इस संसारमें तोन शरीर हर समय धारण किये हुए इस शरीररूपो थैलेके अन्दर जबतक आत्मा रहता है तबतक उसका जीवन कहा जाता है । उस थेलेको छोड़ने पर मरणके नामसे कहते हैं और पूनः नवीन थेलेको धारण करने पर जन्मके नामसे कहा जाता है। यह जन्म-जीवन-मरण समस्या है । एक घरको छोड़कर दूसरे घरपर जिस प्रकार यह मनुष्य जाता है, उसी प्रकार एक शरीरको छोड़कर दूसरे शरीरमें यह आत्मा जाता है। जबतक यह शरीरको धारण करता है तबतक वह संसारी बना रहता है। शरीरके अभाव होनेपर उसे मुक्तिको प्राप्ति होता है। शरीरके अभावको अबस्याको ही मोक्ष कहते हैं।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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