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________________ ४० भरतेश वैभव भोजन करते समय थाली कटोरी वगैरहमें हाय बाकर जैसे ही मुंहमें पहुँचता था वैसे ही उनका हृदय सिद्धलोकमें पहुँचता था । ___ जिस प्रकार किसी मनुष्यको भूख तो न हो, परन्तु बन्धुओंके आग्रहसे वह भोजन कर रहा हो; उसी प्रकारकी गति चक्रवर्तीकी हो गई थी अर्थात् वे बहुत उदासीन भावसे भोजन कर रहे थे, क्योंकि अनुपम पुण्योदयवाले श्री भरतको मोक्षके सिवाय अन्य विषयमें आनंद ही नहीं आता था । ___ जिस प्रकार किसी दुष्ट राजाके राज्य में जबतक कोई सज्जन रहे तबतक तो उसे दुष्ट राजाकी बात सुननी ही पड़ती है, उसी प्रकार चक्रवर्ती भरत यह विचारकर भोजन कर रहे थे कि जबतक इस दुष्ट कर्मजन्य शरीरके साथ मैं हूँ तबतक मुझे उसकी रक्षा करनी हो पड़ेगी। जैसे धरपर आये अतिथिका सत्कार कर पहुंचाने के बाद मनुष्य अपने घर में आकर स्वस्थ बन जाता है, उसी प्रकार भरतेश उस शरीरको अतिथि समझते थे। उसे खिलाकर वे अपने घररूप जो आत्मा है उसमें पहुंचकर सुखसे रहते थे। इस प्रकार भरतेश अपने आत्मविचार करते हुए भोजन कर रहे हैं। फिर भी उनकी रानियां चुपचाप बैठी हैं। उन्होंने अभी भोजन करना प्रारम्भ नहीं किया है। चक्रवर्तीने जरा आँख फेर कर उनके तरफ देखा और पूछा-आप लोग क्यों बैठी हैं ? भोजन क्यों नहीं करती हैं ? तब किसीने भरतेशके कान में कुछ कहा । भरतने सम्मतिका संकेत किया । तत्क्षण एक रानीने भरतकी थालीसे कुछ पक्वान्न लेकर सबको परोस दिया, तब कहीं सबको संतोष हुआ। उन पतिव्रता स्त्रियोंकी पतिभुक्तशेषान्न खानेकी प्रतिज्ञा थी। क्या इस प्रकारकी पतिभक्ति घर-घरमें हो सकती है ? ___ जीवबल, देहबलकी वृद्धिके लिए भरतेशने ३२ ग्रास भोजन करके तृप्ति की। फिर उन रानियोंने भी हितमितमधुर भोजनकर तृप्ति प्राप्त की। वे सदा सन्तोषान्न खाती रहती हैं। इसलिए उनको क्षधाग्नि विशेष नहीं है। ___ भरत व उनकी रानियोंने निर्मल जलसे हाथ धो लिया। भरत कहने लगे कि अब हमें भोजनानन्तरकी क्रिया करनी है। आप लोग अब उन परोसनेवाली रानियोंको भोजन करावें । ऐसा कहकर वे स्वयं आँख मीचकर बैठ गये और सिद्धमन्त्रका ध्यान करने लगे।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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