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________________ भरतेश वैभव नहीं कह सकते । ब्रह्मा ही जाने । परन्तु छोटा भाई बिलकुल घबराया नहीं। सब लोग शाबाश ! शाबाश ! यह कह रहे हैं। इसी प्रकार अनेक जोड़ियोंमें अनेक प्रकारके खेल चल रहे हैं। देखनेवाले वीर, विक्रम, धीर, साहसी, अभ्यामो, शूर, याबाश इत्यादि उत्तेजनात्मक शब्द कह रहे हैं । कोई पृरुनाथ शाबाग ! गुरुनाथ वाहवा ! बाबा ! हंसनाथ बस करो ! कमाल किया इत्यादि प्रकारो कह रहे हैं। इसी प्रकार जलक्रीड़ा. वनक्रीड़ा आदिमें भी बिनोद हो रहा है। कोई धनुविद्यामें, कोई अस्त्र-शस्त्रमें, कोई शरीर साधनेमें अपनी-अपनी प्रवीणताबो बतलाते हैं। आकाशके तरफ उड़नेकी अद्भुत् कलाको देखनेपर यह शंका होतो है कि वे खेचर हैं या भवर हैं ? उनका लंघनचातुर्य अंगलघुताको देखनेपर वे देवकुमार हैं या ग़जकुमार हैं यह मालूम नहीं होता। छोटे भाइयों के कलानपूण्यको देखकर बड़े व मानन्दसे न देते हैं। माली माती पुत्र है, इसका नो उनके हृदय में विचार ही नहीं है। उनका आरमका प्रेम प्रसंशनीय है। कोई मल्लविद्यामें माघन कर रहे हैं, कोई कलागेका प्रयोग कर रहे हैं. कोई गदाविनोद कर रहे हैं, चन्द्रायुधमे कोई बच्चायुधसे, कोई रविहाससे, कोई चन्द्रहास माधन कर रहे हैं। सूखे पत्तोंके समान बड़े-बड़े वृक्षोंको उखाड़ कर फेकते हैं। इनके बलका क्या वर्णन करना? अर्धचक्रवर्ती बड़े-बड़े पर्वतोंको उठाते हैं। परन्तु ये तो पूर्ण चक्रवर्तीके कुमार हैं। और तद्भवमोक्षगामी, वज्रमय देहको धारण करनेवाले हैं फिर वृक्षांको उखाड़कर फेंका तो इसमें आश्चर्य की बात क्या है ? इस प्रकार माधन करते हुये मध्याह्न काल भी बीत गया। सेवकोंने इन राजकुमारोंसे प्रार्थना की कि स्वामिन् ! आप लोगोंकी वीरतासे घबराकर सूर्य भागकर आकाशपर चढ़ गया है। तब सब लोगोंको मालूम हमा बहत देरी हो गई है। अब घर जाना चाहिये । शरीर सब धल रेतसे भर गया है । पमोनेसे तर हो गया है । आनन्दसे एक दुसरेके समाचारको पूछने लगे हैं। हाथी के बच्चों के समान उन कुमारोंने तालाबमें प्रवेश कर स्नान किया । तदनन्तर शृङ्गार कर जिनेन्द्रमगवंतकी स्तुति की । आत्मध्यान किया। तदनन्तर भोजन कर उसी नदोके पासमें स्थित जंगलमें चले गये। इस प्रकार नदीके किनारेपर चक्रवर्ती के पुत्रोंने अपने विद्यासाधनका प्रदर्शन किया। ___ महापुरुषों की लीला अपार है। भरतेश्वरके एकेक पुत्र एक-एक रत्न ही हैं। वे अनेक कलाओंमें निपुण हैं। ऐसे सत्पुत्रोंको पानेके लिए भी संसारमें बड़े भाग्यकी जरूरत है । क्योंकि सातिशयपुण्य के बिना गुणवान्
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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