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________________ मररोश वैभव माई ! तुम लोगोंका उत्साह आज इतना बढ़ा हुआ है तो हम लोग क्यों रोकें ? तुम्हारी जैसी इच्छा हो वैसा ही होने दो। हम लोग भी आयेंगे । उसके बाद लंगोटी, बनियन वगैरह आवश्यक पोषाकको धारण कर तैयार हुने वे कुमार नैसर्गिक रूपसे ही सुन्दर हैं। इस समय अब वे कसरतकी पोशाकको धारण करने लगे तो और भो सुन्दर मालूम होने लगे | उनके शरीरकी सुगन्धपर गुंजायमान करते हुये भ्रमर आने लगे। उनके शब्दसे मालूम हो रहा था कि शायद वे इन कुमारोंकी स्तुति हो कर रहे हैं। सिद्ध ही शरण है । जिनेन्द्र ही रक्षक है । निरंजनसिद्धं नमो इत्यादि शब्दोंको उच्चारण कर ये साधनाके लिये सन्नद्ध हये । वे जिस समय एकएक कूदकर उस रेतपर आये तो मालूम हो रहा था कि गरुड़ आकाशपर उड़कर नीचे आ रहा हो अथवा सुरलोकके भमरकुमार आकाशपर उड़कर भूमिपर आ रहे हों। जब वे एक दूसरे कुस्तीके लिये खड़े हुये तो शंका आ रही थी कि दो कामदेव हो तो नहीं खड़े हैं ? आपसमें विनोदके लिये दो पार्टी करके खेल रहे हैं। खड्गसे, लाठोसे, बर्षीसे अनेक प्रकारकी कलालोंका प्रदर्शन कर रहे हैं। भाई ! देखो! यह कहते हुये एक बालकने मस्तककी तरफ दिखाकर पैरके तरफ प्रहार किया। परन्तु जिसके प्रति प्रहार किया वह भी निपुण था। उसने यह कहते हुए कि माई ! यह गलत है, उस प्रहारको परसे धक्का देकर दूर किया । वह गलत नहीं हो सकता है, यह कहकर पुनः मस्तकपर प्रहार किया तो हमारी बात गलत नहीं है, सही है, यह कहकर उस भाईने पुन: उसका प्रतिकार किया। प्रभो ! देखो यह पाव निश्चित है यह कहते हुए पुनः पैर व छातीपर प्रहार किया। यह उपर ही रहने दो, इधर जरूरत नहीं, यह कहकर भाईने उसका प्रतिकार किया। इस प्रकार परस्पर अनेक प्रकारको कुशलतासे एक दूसरेको चकित कर रहे थे। और एक माईने अपने छोटे भाईके प्रति एक दंड प्रहार किया, तब उसने भी एक दंडा लेकर कहा कि भाई मुझे भी आज्ञा दो, तब बड़े भाईने कहा कि भाई तुम पराक्रमो हो । मेरे प्रति तुम्हारी भक्ति है मैं जानता हूँ । इस समय भक्तिको एक तरफ रखो । शक्तिको बताओ। छोटे भाईने कहा तो फिर तुम्हारी आज्ञाका उल्लंघन क्यों करू? कृपा कर देखिये । यह कहकर भाईने एक प्रहार किया तो वह उसे दो जबाब देता था। इस प्रकार यह प्रहारसंख्या बढ़ते-बढ़ते कितनी हुई यह हम
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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