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________________ मोक्षविजय साधना संधिः परमपरंज्योति ! कोटिचंद्रादित्याकिरण ! सुज्ञानप्रकाश !। सुरमुकुटमणिजितचरणाज ! शरण श्रीप्रथमजिनेश ! ॥ हे निरंजन सिद्ध ! आप साक्षात मोलके कारण हैं। सर्वश हैं। मोक्षगामियों के भाराध्य हैं। मोक्षविजय है। त्रिलोक पक्ष हैं। इसलिए मोनविजयके प्रारम्भमें मुझे सम्मति प्रदान कीजिये। ____ केलासमें जिनेन्द्रमन्दिरोंका निर्माण, बहुत वैभवके साथ उनकी पूजा प्रतिष्ठा वगेरह होनेके बाद सम्राट अपने हजारों पुत्रों एवं शनियोंके प्रेम सम्मेलनमें बहुत आनन्दके साथ अपने समयको व्यतीत कर रहे हैं। प्रजाओंका पालन पुत्रवत् हो रहा है ! भरतेश्वरके पूत्र आपसमें प्रेमसे विनोद खेल कर रहे हैं। एक-एक अगह सौ-सौ पुत्र कहीं तालाबके किनारे, कहीं नदीके किनारे रेतपर, कहीं उद्यानमें खेलते हैं। उनकी शोभा अपूर्व है । चौदह पन्द्रह, सोलह-सत्रह अठारह वर्षके वे हैं। ज्यादा उमर है नहीं। अभी विवाह नहीं हुआ है। उनको देखनेमें बड़ा आनन्द होता था। रविकोतिराज रतियोर्यराज, शत्रुवीयराज, दिविचन्द्रराज, महा. जयराज, माधवचन्द्रराज, सुजयराज, रिजयराज, विजयराज, कान्त. राज, अजितंजयराज, वीरंजयराज, गजसिंहराज आदि सौ पुत्र जो कि सौन्दर्य में स्वर्गाके देगेको भो तिरस्कृत करनेवाले हैं। अनेक शास्त्रोंमें प्रवीण हैं, अपने साधन-सामध्यंको बतलाने के लिये उस दिन तैयार हुये । गिडि, पुस्तक, खड़ावू, छोटीसी कठारी एवं अनेक अस्त्र और वीणा वगैरह सामग्रियोंको नौकर लोग लेकर साथमें जा रहे हैं। छोटे भाइयोंने बड़े भाइयोसे प्रार्थना की कि स्वामिन् ! यहाँपर नदीके किनारे रेत बहुत अच्छी है। जमीन भी साफ-सूफ है। यहीपर अपन साधन ( कसरत कवायत ) करें तो बहुत अच्छा होगा । तब बड़े भाइयोंने भी कहा कि phTTA
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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