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भरतेश वैभव
_ विस्तारके साथ पूजा कर तो कहीं देवसमूह न आ जाय, इस भयसे समस्त खियोंसे संक्षेपसे ही भरतेश्वरने पूजा कराई।
तदनन्तर भगवत्तसे भरतेश्वग्ने प्रश्न किया कि स्वामिन् ! हमारी स्त्रियों में कितनी अभव्य हैं और कितनी मव्य हैं, कहियेगा । उत्तरमें भगवंतने फरमाया कि भव्य ! तुम्हारी स्त्रियोंमें कोई भी अभव्य नहीं है सभी देवियाँ भव्य ही हैं। वे क्रमशः अव्यय सिद्धिको प्राप्त करेंगी । चिद्रव्यका उन्हें परिवप है. पहल गीवन्म है। भारी उनको अब स्त्री. जन्म नहीं है। आगे पूलिंगको पाकर वे सभी मुक्ति प्राप्त करेंगी। तुम्हारी पुत्रियां, बहुएं, पुत्र व जैवाई सभो तुम्हारे साथ संबंधित होनेसे पुण्यशाली हैं, मव्य हैं, अभव्य नहीं हैं।
भरतेश्वरको इसे सुनकर आनन्द हुआ। स्त्रियोंको भी परम हर्ष हुआ। अब इस स्थानमें अधिक समय ठहरना उचित नहीं समझकर उन स्त्रियोको रवाना किया और बाहर खड़े हुए गंगादेव, सिंधुदेव, दामाद, पुत्र वगैरहको बुलवाया। सबने भगवतका दर्शन किया, स्तुति को, भक्ति की, और अपनेको कृतकृत्य माना।
भरतेश्वरने उनको कहा कि पुनः कभी आकर आनंदसे पूजा करो। आज सब स्त्रियों को लेकर अयोध्यानगरकी ओर जाओ। उन सबने भगचंतके चरणोंमें नमस्कार कर वहाँसे आगे प्रस्थान किया और सर्व स्थियों के साथ विमानारूक होकर अयोध्याकी ओर चले गये। भरतेश्वर अभी समवशरणमें ही हैं।
समवशरणसे गंगातटपर गया हुआ भव्य महागण वापिस आया। "कल्याण महोत्सव बहुत अच्छा हुआ।' यह प्रत्येकके मुखसे शन्द निकल रहा है । मरसेश्वरने पूछा कि कौनसा कल्याण हुआ ? उत्तरमें देवगणोंने कहा कि गंगाके तटपर तोन देहको दूरकर भगवान् अनंतबोयं केवली मुक्ति पधार गये । उनका निर्वाण कल्याण ! ___ समवशरणमें दुःख पैदा नहीं हो सकता है इसलिए भरतेश्वरने सहन किया । नहीं तो छोटे भाईका सदाके लिए अभाव हो गया, वह सिद्धविलाको ओर चला गया, यह यदि अन्य भूमिपर सुनते तो भरतेश्वर एकदम मच्छित हो जाते । भरतेश्वरने पुनः धैर्यके साथ प्रश्न किया उनकी गंधकुदीमे स्थिस यशस्वती माता कहाँ चलो गई ? तब योगियोंने उत्तर दिया कि वह बाहुबलि केपलीको गंधकुटीमें चली गई।
मरतेश्वरने भगवंतसे प्रश्न किया कि प्रभो ! अनंतकोयं योगी इसनी