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भरतेश वैभव
देवगण जिस समय वहाँसे चले गये थे उस समय उन्होंने अपनी विद्या से देवताओंको प्रेरित किया था कि वे भगवंतके ऊपर चामर बराबर दुलाते रहें। उन विद्या देवताओंके विद्याबलसे ही वहाँपर कोई न रहनेपर भी चामर तो डुल ही रहे थे । इसी प्रकार पुष्पवृष्टि हो रही थी। धवल छत्र विराज रहा था । भामंडलको कांतिने सब दिशाको व्याप लिया था । इन सब बातोंको देखकर उन देवियोंको बड़ा ही हर्ष हो रहा है। ___ इन देवियोंने पहिले कभी समवशरणको नहीं देखा था, अर्हत्प्रतिमाओंका ही दर्शन उनको मिला था। अब यहाँपर साक्षात् भगवंतका व समनशरणका दर्शन होने से उनको अपार आनन्द हो रहा है। विशेष क्या ? जरलोकके एक मनुष्यको सुरलोकमें ले जाकर छोड़े तो उसकी जैसी हालत होगी, उसी प्रकार इन लियोंकी हालत हो रही है। ___ भगवंतको उनके प्रति कोई ममकार नहीं है। परन्तु वे मात्र मोहो होनेसे कहते हैं कि ये हमारे मामा हैं, हमारे दादा हैं हमारे पिता हैं, इत्यादि प्रकट नपाा-अपना संबंध लगाकर विचार करते हैं, जिस प्रकार कि बच्चे चंद्रमाको देखकर अनेक प्रकारकी कल्पनायें करते हैं।
गंगादेवी व सिंधुदेवीको भी आज परम संतोष हुआ है। वे मनमें सोचने लगीं कि सनाट्ने हमें अपनी बहिन बनाया, आज वह सार्थक हुआ.। आज पिताश्रीके चरणोंका दर्शन मिला । हम लोग धन्य हुई।। ___ भगवंतके पास २० हजार केवली थे। उन सबकी वंदना उन स्त्रियोंने की। इसी बीचमें कच्छ केवली महाकच्छ केवलोका दर्शन विशेष भक्ति के साथ पट्टरानीने किया। इसे देखकर नमिराज विनभिराजको पुत्रियोंने भी उन दोनों केवलियोंकी विशिष्ट भक्तिसे वंदना को। क्योंकि उनके वे दादा थे।
भुजबलि योगी व अनंतवीर्य योगोको भी बहुत देरतक वे खियाँ ढूंढ़ने लगी थीं। परन्तु वे उस फैलास पर्वतपर नहीं थे, अन्य भूमिपर विहार कर रहे थे। इसी प्रकार रति अजिकाबाई, ब्राह्मो, इच्छा. महादेवो, सुंदरी अजिकाको भी देखनेको इच्छा थी। परन्तु ये तपस्विनी भी उक्त समवशरणमें नहीं थीं। अन्यत्र विहार कर गई थीं। बाफीके सर्व तपोनिधियोंकी वंदना कर भगवंतके पास आई। प्रार्थना करने लगी कि भगवन् ! आपके चरणों के दर्शनतक हम लोगोंका एक गूढ़वत था, उसकी पूर्ति आजहुई।