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________________ भरतेश वैभव समवशरणमें भरे हुए असंख्य जन गंगातटकी ओर चले गये थे। इसलिए समवशरण खाली हो गया था | अब भरतेश्वरके अगणित परिवारके साथ पहुंचनेसे वह समवशरण फिर भर गया । भरतेश्वरका परिवार क्या थोड़ा है ? उनके परिवार में देवोंका तिरस्कार करनेवाले सुन्दर पुरुष हैं । देवांगनाओंको भो नीचा दिखानेवाली स्त्रियां उनकी रानियों व पुत्रियों हैं । इन सबसे जब वह समवशरण पुनश्च भर गया तो उसने एक नवीन शोभा आई। स्वर्गके देव-देवांगनाओं के साथ मिलकर देवेंद्र समवशरणमें प्रवेश कर रहा हो उस प्रकार भरतेश्वर अपने सुंदर परिवारके साथ उस समवशरणमें प्रवेश कर रहे हैं। दामाद, पुत्र व गंगादेव, सिंधुदेव इनको बाहर ही खड़ाकर कह दिया कि आप लोग बादमें दर्शन करो। पहिले खियोंको दर्शन करना चाहिये। इस विचारसे सब नारियोंको साथ लेकर सुविवेकी भरतेश्वर भगवंतके पास चले गये। मगवंतके दर्शन होते ही हर्षसे सबने जयजयकार किया व उनके चरणों में उत्तम भेंटको अर्पण कर भरतश्वरने साष्टांग नमोस्त किया। दिव्यवाणीश ! वृषभेश ! परमात्मन! आप सदा जयवंत रहें, इस प्रकार प्रार्थना की। ___ उसी समय उन देवियों ने भी भगवंतके चरणोंमें नमस्कार किया । उस समय भूमिपर पड़ी हुई वे देवियाँ नवीन लताओंके समान मालूम होतो थीं। एकदम उठकर सर हाथ जोड़कर भगवंतकी शोभा देखने लगीं। आनन्दवाष्प उमड़ रहा है । शरीरमें सारा रोमांच हो गया है। उनके हतिरेकका क्या वर्णन करना, समझमें नहीं आता। कमलको स्पर्श न कर चार अंगुल ऊपर निराधार खड़े हुए भगवंतको ये बियां झुक झुककर देख रही हैं । आश्चर्य के साथ देखता हैं। प्रदक्षिणा देकर स्त्रियों समझ गई कि चारों तरफ एकसा मुख है अब्बब्ब ! यह क्या आश्चर्य है ? क्या इसे ही चतुर्मुखब्रह्मा कहते हैं। दीर्धकेशको सुन्दरता, सूर्यचन्द्रमाके समूहको भी तिरस्कृत करनेवालो शरीरकांतिको देखकर वे त्रियाँ आनन्द मना रही हैं। भगवंतके भद्र आकारको एक दफे देखती हैं तो पर आसन मुद्राको एक दफे देखती हैं, इस प्रकार भगवंतके प्रति सभक्तिसे देखकर वे सियां आनन्द समुद्रमें हो मुबकी लगा रही हैं।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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