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भरतेश वैभव उनकी इच्छानुसार कुछ दिन भरतेधरने उनका सत्कार किया। तदनन्तर उन सबको साथमें लेकर भरलेश्वर कैलास पर्वतकी ओर जानेके लिए निकले। जाते समय न मालूम कितना मोह ? उन्होंने पोदनपुरसे बाहुबलिके पुत्र व बहुओंको भी बुलाया था । उनको लेकर वे बहुत आनंदके साथ कैलास पर्वतकी ओर चले गये । साथमें अपने सहोदरोंके पुत्र व उनकी बहू वगैरह सर्व परिवारको लेकर गये। समस्त कुटुम्ब परिवारको लेकर अनेक करोड़ वाद्योंके शब्दके साथ मुखवस्त्र उद्घाटन करनेके शुभ दिवसपर वहां पहुंचे।
वहाँपर सर्व विधानको पहिलेसे युवराजने कराया था। भरतेश्वरने जाकर मुखवस्त्रका उद्घाटन कराया । सर्व लोकने उस समय जय-जयकार किया। क्रमसे ७२ जिनमंदिरोंमें स्थित सुन्दर अहप्रतिमाओं को भरतेश्वरने भेंट रखकर अपने पुत्र व मित्रोंके साथ वंदना की। इसी प्रकार रानियोंने, बहिनोंने, पुत्रियों ने उन माणिक्य व सुवर्णकी प्रतिमाओंकी मणिरत्नादिक भेंटकर वंदना की। नवरत्नोंसे निर्मित जिनमंदिर हैं । सुवर्णसे निर्मित जिनप्रतिमायें हैं । इस प्रकार अत्यंत सुंदरतासे सिद्धासनमें विराजमान अर्हत्प्रतिमायें शोभित हो रही हैं । वहाँका वर्णन क्या करें ?
पूजाविधान होने के बाद नित्यनैमित्तिक पूजनके लिए योग्य शासन लिखकर व्यवस्था की गई । भरतेश्वर तेजोराशि मुनिराजने जिस समयकी सूचना दी थी उसीको प्रतीक्षा कर रहे थे।
ऋषिवास्यमें कोई अन्तर हो सकता है ? उस समय भगवंतके समवशरणसे देव, नर-नारी, तपस्वीजन वगैरह सर्व समुदाय गंगा नदीके तीरको मोर जाने लगा है। भगवंत के निर्वाण कल्याणको देखनेको उत्कट भावनासे निमिषमात्रमें उस पर्वतसे सर्वजन अन्य भूमिपर चले गये । ____ अन्न भगवंतके पास कोई नहीं है । कुछ वृद्ध तपस्वीजन मात्र मौजूद हैं । बाकीके सभी चले गये हैं। इसी अवसरको योग्य समझकर भरतजी अपनी बहिनोंको, पुत्रियोंको व रानियोंको व इतर जंवाई आदि परिवारको लेकर समवशरणमें घुस गये। द्वारपाल अनुमति देकर कुछ दूर सरक गये । भरतेश्वर समझ गये कि यह स्त्रियोंके उन व्रसका प्रताप है।
नवविध परकोटा, मानस्तंभ, खातिका, वेदिका, विविध वन इनके संबंध पहिले उन स्त्रियोंने शाखोंसे प्रवण किया था। अब आँखोसे देखकर उनके हर्षका पारावार नहीं रहा। बहुत आनन्दके साथ उन्हें देखती हुई बढ़ रही हैं।