________________
भरतेश वैभव गंभीरपूर्ण व्यवहारका वर्णन करने लगीं। इसे सुनकर भरतेश्वरको और भो हर्ष हुआ। उन्होंने अपनी पत्नियोंको बुलाकर कहा कि सुनो ! देवियों ! सुनो, अपनी बेटियोंके सन्मार्गपूर्ण व्यवहारको सुनो । तब उन रानियोंने कहा कि आप हो सुनकर प्रसन्न हो जाइयेगा । हम लोग क्या सुने !
बेटी ! तुम बहुत थक गई हो ! जाओ विश्रांति लो। इस प्रकार कहकर उन पुत्रियोंको रानियों के साथ महलके अन्दर भेजा।
इतनेमें भाईके दीर्घराज्यको देखकर सन्तुष्ट होती हुई दो बहिनें वहाँ पर आई । उन्होंने हर्ष पूर्वक आकर भाईको तिलक लगाया ] भरतेश्वरने भी सहोदरियोंको देखकर हर्ष व्यक्त करते हुए आओ! सिंधुदेवी ! गंगादेवी ! आओ ! बैठो ! इस प्रकार कहकर योग्य मंगलासन दिलाया । दोनों बहिनें बैठ गई।
बहिन ! तुम लोगोंका देश बहुत दूर है। तुम लोग आई, यह बहुत अच्छा हुआ। उत्तरमें उन दोनों देवियोंने कहा कि भाई! कहांका दूर है, तुम्हारा दर्शन मिला, यह सार है, दूर कहाँका आया?
इतने में रानियोंको दोनों देवियोंके आनेका समाचार मालूम हुआ। उन्होंने अन्दरसे बुला भेजा । भरतजीने अन्दर जानेके लिए दोनों बहिनोंको कहा। दोनों देवियर्या महलमें गई। पट्टरानीको आगे कर मभी रानियाँ उनके स्वागतके लिए आई। सामने उनको देखनेपर विनोदसे कुछ कहने लगी। __ वे रानियां कहने लगों कि किस देशकी स्त्रियाँ हमारे महलमें धुसकर आ रही है ? तब उत्तरमें उन दोनों देवियों कहने लगों कि जिस महलमें हमारा जन्म हुआ है उसमें घुसकर रहनेवाली ये स्त्रियाँ कौन हैं ? कहो तो सही ! पट्टरानो और उन दोनों देवियों ने परस्पर प्रेमसे आलिंगन देकर वहाँ बैठ गई। बाकीकी स्त्रियोंके साथ इसी खुशीसे बातचीत करती हुई वहां कुशल प्रश्नादिक कर रही हैं। उनका आज एक नवोन त्यौहार ही है।
जब स्त्रियाँ इधर आनन्द विनोदमें थीं, उधर भरतेश्वरके पास कनकराज, कांतिराज, शांतराज आदि जंवाई (जामात) आये; इसी प्रकार गंगादेव, सिंधुदेव भी भरतजोके पास आये। उन सबने भरतेश्वरके चरणों में अनेक प्रकारके रत्न-वस्त्रादिक मेंटमें रखकर नमस्कार किया।
गंगादेव और सिंधुदेवको योग्य आसन दिलाकर जंवाइयोंको सतरंजीपर बैठनेके लिए कहा । सब लोग आनन्दसे बैठ गये।