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________________ भरतेश वैभव ७९ आश्चर्य है । एक गरीब अगर प्राणांतिक बीमारीसे भी पड़े तो भी लोग उसकी कुछ परवाह नहीं कर उपेक्षा करते हैं। परन्तु श्रीमंतने यदि एक स्वप्नको भी देखा तो लोक आकर उपचार करता है । यह लोककी रीति है। इसलिए कहनेको परिपाटी है कि गरीबकी बीमारी घरभर, और श्रीमंतकी बीमारी गांवभर (लोकभर ) सो भरतेश्वरको स्वप्न पड़ते ही बड़े-बड़े राजा महाराजा उनसे मिलने आये हैं। I मगध, वरतनु, हिमवंत देव आदि लेकर प्रमुख व्यंतर आये । एवं खेचर राजा भी आये । और रोज कोई न कोई देशके राजा आ रहे हैं। और भरतजीके चरणोंमें अनेक वस्त्र रत्नादिक भेंट रखकर उनका कुशल वृत्त पूछा जाता है। इस प्रकार वहाँपर प्रतिदिन एक उत्सव ही चालू है । प्रत्येक देश के राजा आता है और भेंट समर्पण करता है व भरतेश्वरके प्रति शुभकामना प्रकट करता है । कोई कहते हैं कि हम लोग जो ब्राह्मणोंको दान देते हैं, बहुत वैभवसे जिनपूजा करते हैं, योगियों की भक्ति से उपासना करते हैं, इन सबका फल सम्राट्को रहे । अनेक राजा गण स्वप्नदोष परिहारार्थं कहीं शान्तिक, आराधना, होम हवनादिक करा रहे हैं । इस प्रकार अनेक तरहसे राजा सम्राट्के प्रति उपचार कर रहे हैं । परन्तु सम्राट् हाँ, ना कुछ भी न कहकर सबके व्यवहारको उदासीन भावसे देखते जा रहे है। कारण वे इसे भी एक स्वप्न ही समझ रहे हैं । भरतेश्वर सोचते हैं कि मैं बिलकुल कुशल है । आत्माको कोई अस्वस्थता ही नहीं है। आत्मयोग ही उसके लिए हर तरहसे संरक्षण करनेवाला मन्त्र है । केवल ये राजा विनय करते हैं, उसका इन्कार नहीं करना चाहिए | इस भाव से मैं साक्षिरूपमें उसे स्वीकार करता हूँ। सबके द्वारा किये गये आदरको ग्रहण कर उनको उससे भी दुगुना सत्कार कर भरतेश्वरने आदरके साथ भेजा । सब लोग अपने-अपने स्थानोंमें गये । एक दिनकी बात है । बुद्धिसागर मंत्री अपने सहोदर भाईको लेकर भरतेश्वर के पास आये और उन्होंने एक माहुलुंगके फलको भेंटमें रखकर नमस्कार किया व सम्राट्से कहा कि प्रभो ! आपसे एक प्रार्थना है । स्वामिन्! देवलोक, नागलोक व नगरलोक में आप सरीखे कोई राजा नहीं है। यह सब दुनियाको मालूम है । और केवल दो घटिकाके तपमें कर्मो को आप जलायेंगे यह भी भगवंतने कहा था, लोग इसे जानते हैं । आप राजाओं में राजा है योगियोंमें योगी हैं, स्त्रियोंके लिए उबल कामदेव हैं, सूईके नौक जितना भी दोष आपमें नहीं है। इसलिए आप प्रौढ़ राजा है ।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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