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________________ भरतेश वैभव मैं प्रशंसा कर रहा हूँ मुझे स्तुतिपाठक न समझें । परन्तु आपको देखकर प्रसन्न न होनेवाले लोकमें कौन हैं ? विशेष क्या कहूँ ! स्वामिन् ! आपने ही तीन लोकमें मस्तकको अपने गुणोंमे आकृष्ट कर डुलाया। सुविवेकी गजाको दरबार पहिले जन्ममें जिन्होंने बहुत पुण्यका सम्पादन किया है उन्होंको प्राप्त हो सकती है। यह बात बिलकुल सत्य है । किंबहुना, आपकी सेवासे मैंने प्रत्यक्ष स्वर्गसुखका ही अनुभव किया । आपको स्मरण करने मात्रसे, देखने मात्रसे, सबको ज्ञानका उदय होता है। फिर आपको मंत्रीकी क्या आवश्यकता है, केवल उपचारके लिए मुझे मुख्यमंत्री बनाकर आजतक चलाया । स्वामिन् ! आजतक एक परमाणुमात्र. भी मेरी इज्जत ज्ञानको कम न कर लोकमें वाह वाहवा हो उस रूपसे मुझे चलाया । मैं तृप्त हो गया हूँ! नाथ ! आज एक विचारको लेकर आया हूँ उसे सुननेकी कृपा करें। ___नाथ ! मैं चिरकालसे इस संसारनामें परिभ्रमण कर रहा है, अब मेरी उमर काफी हो चुकी हैं, मक्षितीत जापः आ गई है। अब मेरा देह बहुत समय तक नहीं रह सकता है । कैसा भी यह देह नाश शील है। इसलिए अन्तिम समयमें उसका उपयोग तपमें कर बादमें मुक्तिसाधन करूंगा । इसलिए मुझे आशा दीजिये। यह कहकर बुद्धिसागर भरतेश्वरके चरणों में साष्टांग लेटे । भरतेश्वर का हृदय धक-धक् करने लगा। उनको मन्त्रोका वियोग असाह हुआ। उन्होने मंत्रीसे कहा कि बुद्धिसागर ! उठो, मैं क्या कहता हूँ सुनो। ___ तब बुद्धिसागरने कहा कि आप दीक्षाके लिए आनेकी अनुमति प्रदान करें तो मैं उठता हूं। तब भग्तेश्वरने कहा कि लेटे हुए मनुष्य को जानेके लिए कैसे कहा जा सकता है। उठे बिना वह जा कैसे सकता है । तब बुद्धिसागर उठ खड़े हुए। भरतेश्वरने कहा मंत्री ! अन्तिम समयमें तपश्चर्या करना यह उत्रित ही है । परन्तु कुछ समयके बाद जाओ । अभी नहीं जाना। तब बुद्धिसागरने कहा कि स्वामिन् ! बोल, चाल व इन्द्रियोंमें शक्ति रहने तक ही में कर्मोको नाश करना चाहता हूँ। इसलिए अभी जानेको अनुमति मिलनी चाहिए। भरतेश्वरने पुनः कहा कि मंत्री! विशेष नहीं तो कैलासमें निर्मित जिनमन्दिरोंकी प्रतिष्ठा होने तक तुम ठहरो। समारंभको देखनेके बाद दीक्षित हो जाओ । मैं फिर तुमको नहीं रोकूँगा।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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