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भरतेश वैभव
जो मंगलासन भरतेश्वरके लिए पहिलेसे ही निश्चित था उसपर वे बैठ गये । पंक्तिबद्ध होकर वे स्त्रियाँ इधर-उधर बैठ गई । भूकांत भरतको बीचमें कर वे कांतामणी रमणियाँ बैठ गई थी । उस समय सचमुत्रमें ऐसा मालूम हो रहा था, मानों लताओंके मध्य में वसंतराजेंद्र ही हो । अथवा रत्नहारोंके मध्यमें मुख्यरत्न ही हो ।
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बैठी थी और कुछ स्त्रियाँ बहुत प्रेमसे
कुछ तो भोजनको परोसने की तैयारी करनेके लिए इधर-उधर फिर रही थी । रत्न, सुवर्ण व चाँदी आदिले बने हुए पात्रों को लेकर जब वे स्त्रियाँ इधर-उधर जा रही थी तब संभवतः बिजलीके चमकनेका आभास हो रहा था । जिस समय भोजन करनेके लिये भरतेश्वर अपनी स्त्रियोंके साथ वहाँपर बैठे थे उस समय वहाँ एक बरातके पंक्तिभोजनके समान दृश्य दिख पड़ता था । परोसनेवाली रानियाँ बहुत चतुराईसे परोस रही थी । इस समयकी शोभा अत्यन्त विचित्र थी ।
क्या चन्द्रकी पंक्ति अमृतपान करनेके लिये तारांगनायें तो नहीं बैठी थी ? अथवा देवामृतको पीनेके लिये देवेंद्रकी पंक्तिमें देवांगनायें तो नहीं हैं अथवा कामदेवके पंक्तिमें मोहनदेवी तो नहीं हैं ? इस प्रकार दर्शकोंके मनमें विविध प्रकारके विचार आ रहे थे । परोसनेवाली स्त्रियां भी ऐसी ही मालूम हो रही थी कि कहीं वे देवलोकसे ही उतरकर तो नहीं परोस रही हैं ।
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अमृतान्न, भोज्यान्न, देवान्न, दिव्यान्न, व अमृतरसायन इस प्रकार पंचामृतोंको क्रमसे उन्होंने परोसा | अनेक प्रकारके शाक, श्रीखण्ड, पूरनपोळी आदि भक्ष्यविशेषोंको बहुत सावधानीपूर्वक सबको परोसने लगी ।
इसी प्रकार और भी अनेक प्रकारके भक्ष्यविशेष वे स्त्रियाँ बहुत आनन्दसे परोस रही थी ऐसा दिखता था मानो उस दिन कोई पर्व ही हो ।
ये सब स्त्रियां अपने पतिकी पंक्तिमें बैठकर भोजन कर रही हैं और हम इनको परोसने के काममें लगी हुई' इस प्रकार मनमें जरा भी मत्सरभात्र उन स्त्रियोंमें नहीं है । 'हममें और इनमें कोई भेद नहीं है' ऐसा समझकर वे परोसने के काममें लगी हुई हैं ।
लोकमें प्रायः स्त्रियोंमें मत्सरभाव विशेषतया पाया जाता है, परंतु खन विवेकी स्त्रियोंमें यह बात नहीं थी । इस प्रकार बहुत भक्तिसे सब