SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 529
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भरतेश वैभव ७५. मध्य ! स्त्री पुरुष कलिकालमें जातीय शिष्टवृत्तिको छोड़कर विपरीत-वृत्तिको वाहने लगते हैं लोगोंमें स्वच्छन्दवृत्ति बढ़ती है, जातीय मर्यादा में रहना वे पसन्द नहीं करते। उनको उल्टी हो उल्टी बातें सूझने लगती हैं। छटा स्वप्न-स्वामिन् ! पत्तोंसे विरहित वृक्षोंको मैंने देखा | इसका क्या फल होना चाहिये ? कलिकालमें लोग लोक-लज्जाका भी परित्याग करेंगे । उनको अपने शरीरकी शोभाकी भी चिन्ता न रहेगी। अपने आपको भी वे भूल जायेंगे। चारों तरफ यही हालत देखने आयगी । सातको स्वप्न-स्वामिम् ! इस पृथ्वीवर जहाँ देखता हूँ वहाँ सले पत्ते ही पड़े हुए हैं ! इसका क्या फल है। भव्य ! आगेके लोगोंको उपभोग, परिमोगके लिए रसहीन पदार्थ ही मिलेंगे। गोगोषो के लिए सलायक पाने उनकी नसीहत नहीं है। प्रकृतिमें भी उसी प्रकारका परिवर्तन होता है। आठवां स्वप्न-~-एक पागल अनेक वस्त्राभरणोंसे सज धजकर आ रहा था, भगवन् इसका क्या फल है ? । भव्य ! इसके फलसे लोग कलिकालमें सुन्दर-सुन्दर नामोंको छोड़कर इधर उधरके फालतू नामोंको पसन्द करेंगे। अर्थात् कलिकालमं लोग आदिनाथ, चन्द्रप्रभ, भरत, नेमिनाथ, जीवन्धर, शान्तिनाथ आदि त्रिषष्ठिशालका पुरुषोंके नामको पसन्द न कर अपने बच्चोंको प्यारसे कोई मंकीचन्द, डांकीनंद, धोंडीबा, दगडोवा, टामो, इत्यादि गंभीरहीन नामोंको रक्खेंगे । लोगोंको प्रवृत्ति ही इसी प्रकार होगी। नौवा स्वप्न--सोनेकी थाली में एक कुत्ता खा रहा है। आश्चर्य है। इसका क्या फल होना चाहिए ? भरतेश्वरने विनयसे पूछा। कलिकालमें डोभिक ढोंगी लोगोंकी ही अधिकतर प्रतिष्ठा होती है। सज्जन लोगोंका आदर जैसा चाहिए वैसा नहीं हो पाता है। लोग भी ढोंगको अधिक पसन्द करते हैं। सत्यवक्ता, स्पष्ट-वक्ताको निन्दा करनेका प्रयत्न करेंगे। बसा स्व-स्वामिन् ! उल्लू और कौवा वगैरह मिलकर एक शुभ्र हंसपक्षीको तंग कर रहे थे। उसे अनेक प्रकारसे कष्ट दे रहे थे। इसका क्या फल होगा?
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy