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________________ ७४ भरतेश वैभव __ भगवन् ! रहने दीजिये, उनका जो भवितव्य है होगा, अब कृपया रात्रिके अन्तिम प्रहरमें देखे गये सोलह स्वप्नोंका फल बतला दीजिये । इस प्रकार हाथ जोड़कर सम्राट्ने प्रार्थना की । तब आदि प्रभुने उन स्वप्नोंका फल बतलाया। पहिला स्वप्न-एक एक शेरके साथ अनेक शेर मिलकर जा रहे हैं । और पंक्तिबद्ध होकर उनके पीछेसे इसी प्रकार तेईस शेर जा रहे हैं। यह जो तुमने सबसे पहिला स्वप्न देखा है उसका फल यह है कि हमें आदि लेकर तेईस तीर्थंकर होंगे। तबतक धर्मका उद्योत यथेष्ट रूपसे होगा । मिथ्यामतोंका उदय प्राणियोंके हदयमें होनेपर भी उसकी पद्धि नहीं हो सकती है। जिनधर्मका ही धावल्य होगा। लोगों में मतभेदका उद्रेक नहीं होगा। बूसरा स्वप्न-दूसरे स्वप्नमें भगवान् ! मैंने देखा कि अन्तमें एक शेर जारहा था, उसके साथ बाकी मृग मिलकर नहीं जाते थे, उससे रुसकर दुर भाग रहे थे । भगवंतने फरमाया है कि इसके फलसे अन्तिम तीर्थकर महावीरके समयमें मिथ्यामतोंका तीव्र प्रचार होने लगता है। मतभेदकी वृद्धि होती है। तीसरा स्वप्न-स्वामिन् ! एक बड़े भारी तालाबको देखा जिसके बीचमें पानी बिलकुल नहीं है । सूख गया है। परन्तु कोने कोनेमें पानी मौजूद है। भव्य ! कालिकालमें जैनधर्मका उज्ज्वल रूप मध्य प्रदेशमें नहीं रहेगा ! किनारेमें जाकर रहेगा । इसकी यह सूचना है। इस प्रकार भगवंतने कहा। चौपा स्वप्न-स्वामिन ! हाथीपर बन्दर चढ़कर जा रहा था इस प्रकारके कष्टतर वृत्तिसे युक्त व्यवहारको देखा । इसका क्या फल ? भव्य ! आदरणीय क्षत्रिय लोग कुलभ्रष्ट होकर अन्तमें राज्य-शासन का कार्य नीचोंके हाथ जाता है । क्षत्रिय लोग अपने अधिकारके मद, इतना मस्त होते हैं कि उनको कोई विवेक नहीं रहता है । आखिरको कर्तव्यच्युत होते हैं । दुष्टनिग्रह व शिष्ट परिपालनको पावन कार्य उनसे नहीं हो पाता है। पांचवा स्व-स्वामिन् ! गाय कोमल घासोंको छोड़कर सूखे पत्तों को खा रही थी । यह क्या बात है? 4 .
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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