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________________ भरतेश वंभव भव्य ! आगे कलियुगमें राग रोषादिक कषायोंसे युक्त जन हंसयोगी वीतराग तपस्वीकी निन्दा करते हैं। उनके मार्ग में अनेक प्रकारके कष्ट उपस्थित करते हैं। तरह-तरहसे उनकी अवहेलना करते हैं। ७६ ग्यारहवां स्वप्न - स्वामिन् ! हाथीकी अंबारीको घोड़ा लेकर जा रहा था यह क्या बात है ? भव्य ! कलिकालके अन्त में श्रेष्ठ जनोंके द्वारा धारण करने योग्य जैनधर्मको अधर्म ही धारण करेंगे। बारहवां स्वप्न --- एक छोटासा बैल अपनी झुण्डको छोड़कर घूरते हुए भाग रहा था। इसका क्या फल होना चाहिये । भव्य ! कलिकालमें छोटी उमरमें ही दीक्षित होते हैं। अधिक वयमें दीक्षित बहुत कम मिलेंगे और संघमें रहने की भावना कम होगी । तेरहवां स्वप्न - दो बैल एक साथ किसी जंगल में चरते हुए देखा इसका क्या फल है । कलिकालमें तपस्वीजन एक दो संख्या में गिरिगुफाओं में देखने में आयेंगे | अर्थात् इनकी संख्या अधिक नहीं रहेगो । चौदहवां स्वप्न – स्वामिन्! अत्यन्त उज्ज्वल प्रकाशसे युक्त रत्नराशिपर धूल जमकर वह मलिन हो गई है । इसका क्या फल है ? भव्य ! कलिकाल में तपस्वियोंको रस, बल, वुद्धि आदिक ऋद्धियोंका उदय नहीं होगा । पद्रव स्वप्न - धवल प्रकाशके चन्द्रमाको परिवेषने घेर लिया था, इसे मैंने देखा । इसका क्या फल होना चाहिये । भव्य ! उस समय मुनियोंको अवधिज्ञान व मन:पर्ययज्ञानकी उत्पत्ति नहीं होगो । सोलहवां स्वप्न - प्रभो ! अन्तिम स्वप्नमें मैंने देखा कि सूर्यको एकदम बादलने व्याप लिया था। वह एकदम उस बादल में छिप गया था। इसका क्या फल है ? कृपा कर कहियेगा | भव्य ! कलिकाल में यहीं पर किसीको भी केवलज्ञानकी प्राप्ति नहीं होगी । कैवल्य भी न होगा । साथ में भगवन्तने यह भी फरमाया कि वह कलि नामक पंचम काल २१ हजार वर्षका रहेगा । उसके समाप्त होने के बाद पुनः २१ हजार वर्षका दूसरा काल बायगा । उसमें तो धर्म कर्मका नाम भी सुनने को नहीं मिलेगा । तदनन्तर प्रलय होगा । प्रलयके बाद
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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