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भरतेश वैभव है । मात्मानुभव होनेसे श्रात्मानुभवियोंको ब्राह्मण यह नाम पड़ता है । यह आत्माका ही शुभ नाम है । इस प्रकार परमात्माने निरूपण किया।
तब ब्राह्मणोंने भगवंतसे प्रार्थना को कि स्वामिन् ! यद्यपि हमारी सृष्टि तो आपसे उसी दिन हो गई है, परन्तु आपके अग्रपुत्रने हमें आज सुन्दर नाम दिया है । अत एव हम लोग उसकी मुणग्राहकताको देखकर प्रसन्न हो गये हैं। हम चक्रवर्तीको सष्टि कहलाना चाहते हैं | सम्राट्ने बीच में कहा कि नहीं ! नहीं ! ऐसा नहीं होगा | सम्राट्ने जब नहीं कहा तो प्रभुने फरमाया कि नहीं क्यों ? इसे मंजूर करो । क्योंकि उन द्विजोंको तुमपर असीम प्रेम है । इसलिए उनकी बातको माननी ही चाहिए । यद्यपि आज यह बात विनोदके रूपमें है, कालांतरमें लोकमें बही प्रसिद्ध हो जाती है । अन्तिम कालतक भो कोई इसे भूल नहीं सकते हैं। आखिर कम से कम जैनियों में इस बात को प्रसिद्धि रहती है कि ये ब्राह्मण चक्रवर्तीके द्वारा सुस्ट हैं । इसीसे सुगमों एक गिलासी पैदा होता है ।
आजके ये जो ब्राह्मण है उनको तो यह विनोदके रूपमें है। परन्तु आगे जो इनके वंशज होंगे उनको जब यह सत्य मालम होगा तो वे आपस में मारपीट किये बिना नहीं छोड़ेंगे । सबसे पहिलेके वर्णको यदि सबके बाद उत्पन्न हुआ कहेंगे तो उनको असंतोष क्यों नहीं होगा?
शूद्र, क्षत्रिय व वेश्योंकी उत्पत्तिके बाद ब्राह्मणोंको मुद्राका उदय हुआ ऐसा यदि कहें रौद्र क्यों नहीं उत्पन्न होगा ? उस समय फिर ये विप्रजन जिनधर्मको शूद्रीय धमके नामसे कहेंगे।
परिणाम यह होगा कि ये ब्राह्मण जिनधर्मका परित्याग और पज्ञ यागादिकका प्रचार करेंगे | इतना हो नहीं सन यज्ञ यामादिकके निमित्तसे हिंसाका भो प्रचार होने लगता है । तब जैनधर्मीय लाग उनकी निन्दा करने लगते हैं।
लोकमें हिंसाके प्रचारको रोकनेके लिए उन ब्राह्मणोंके लिए नियत चौदह प्रकारके दानोंमें दस दान नहीं देना चाहिये । केवल चार दान हो पर्याप्त है । इस प्रकार नियोंके कहनेपर ब्राह्मण एकदम चिढ़ आते हैं । चिढ़कर "हस्तिना नाङ्यमानोपि न गच्छेनमंदिरम्" बाली भाषा बोलने व प्रचार करने लगते हैं।
इस प्रकार ब्राह्मणोंकी जैन व जैनोंको बाह्मण निन्दा करते हुए एकमेकके प्रति कष्ट पहुंचाने के लिए तत्पर होते हैं । इस प्रकार लोकमें अनेक