________________
भरतेश वैभव
षोडश-वप्न संधि
जिस दिन शिजोंका ब्राह्मण नामाभिधान किया गया उसी दिन रात्रिके अन्तिम प्रहरमें सम्राट्ने सोलह स्वप्नोंको देखा । तदनन्तर सूर्योदय हुआ ।
७
नित्य क्रियासे निवृत्त होकर विनयसे विप्रजनों को बुलवाया व उनके आनेपर रात्रिके समय देखे हुए स्वप्नोंके सम्बन्ध में कहा व उनके फलको भगवान् आदि प्रभुसे पूछेंगे, इस विचारसे सम्राट् कैलास पर्वतको ओर रवाना हुए। उस समय विप्रति भी कहा कि भगदतके दर्शन कर हम बहुत दिन हो गये हैं । हम भी आपके साथ कैलास पर्वतको जायेंगे | भरतेश्वरने उन्हें सम्मति दो । तब के सम्राट्के साथ मंगवंत के दर्शन के लिए निकले। जिस प्रकार देवेन्द्र सुरोंके साथ मिलकर समवसरण में जाता है, उसी प्रकार यह नरेन्द्र मुसुरोंके साथ मिलकर समवसरण में जा रहा है ।
आकाश मार्गसे शीघ्र जाकर जिनसभा रूपी कमल-सरोवरमें भ्रमरों के समान उन विप्रोंके साथ समवसरण में प्रवेश किया व उनके साथ आदिप्रभुका दर्शन किया । भक्ति से आनन्दाश्रुका पात होते लगा । शरीर में कंप हो रहा है । सर्वांग में रोमांच हो रहा है । उस समय उन द्विजोंके साथ आदि प्रभुके चरणोंमें पुष्पमालाको समर्पण किया, साथ में निर्मल वाक्यपुष्पमालाको समर्पण करते हुए भगवंतकी स्तुति की।
जय जय ! सर्वेश ! शांत । सर्वेश ! चिन्मय ! चिदानन्द ! तीर्थेश ! भयहर ! स्वामिन्! हम आपके शरणागत हैं । हमारी आप रक्षा करें | इस प्रकार स्तुति करते हुए उन महाजनोंके समूह के साथ भगवंतके चरणों में साष्टांग प्रणाम किया ।
विशेष क्या वर्णन करें। बहुत वैभव के साथ जिनेन्द्र भगवंतकी पूजा की । उस सम्राट्को उत्कट भक्तिको देखकर वहाँ उपस्थित सर्वं नरसुर जय जयकार करने लगे । सम्राट्को भो परम संतोष हुआ। तदनंतर मुनियों की वंदना कर योग्य स्थानमें बेठ गये व भगवंतसे प्रार्थना करने लगे कि स्वामिन्! आपकी सृष्टिके जो द्विज हैं उनको मैंने ब्राह्मण नामाभिधान किया है। उसे आप मंजूर करें ।
भगवंतने दिव्यवाणी से फरमाया कि भव्य ! आज हम क्या मंजूर करें। हमको तो उसी दिन मालूम था । इनको आगे जाकर ब्राह्मण नामाभिधान तुमसे होगा। इसलिए उनको वह नाम रहे। इसमें क्या हज