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________________ भरतेश वैभव हैं। आप लोगोंके आत्मविलासको देखकर मैं बहुत ही प्रसन्न हो गया हूँ। इसलिए हे भूसुरगण ! आप लोगोंका में आज एक नवीन नामानिधान करूंगा । ब्रह्म शब्दका अर्थ आत्मा है, आत्माको अनुभव करनेवाला ब्राह्मण है इस प्रकार शब्दकी सिद्धि है । ब्रह्माणं मात्मानं वेत्ति अनुभवति इति ब्राह्मणः । इस प्रकार आप लोगों का आज ब्राह्मणके नामसे संबोधन होगा। लोकमें सभी नामोंको धारण कर सकते हैं। परन्तु आत्मानुभवके नामको धारण करना कोई सामान्य बात नहीं है । इसलिए आप लोगोंको यह नामाभिधान किया गया है। __ ब्राह्मणगण ! आप लोगोंको एक शुभनाम और प्रदान करता है। लोकके सभी सज्जन जन कहलाते हैं। उनमें आप लोगोंको महाजन कहेंगे । आप लोगोंका दूसरा नाम महाजन रहेगा। पिताजीने आप लोगोंको विज, विप्र, भूसुर, बुध आदि अनेक नामोंको दिया है । मैं आज आपलोगोंके गुणसे प्रसन्न होकर ब्राह्मण व महाजनके नामसे कहूँगा, यही आप लोगोंका आदर है। आपलोग दानके लिए पात्र हैं, दीक्षा के लिए योग्य है इस प्रकार पिताजीने कहा था। परन्तु ज्ञान व ध्यानके लिए भी योग्य हैं इस प्रकार में करार देता है। भरतेश्वरके इस प्रकारके गुण-पक्षपातको देखकर वहाँ उपस्थित सर्व मन्त्री मित्रोंको हर्ष हुआ। और कहने लगे कि स्वामिन् ! ये उत्तम पुरुष हैं। इनको आपने जो उत्तम नाम दिया है वह बहुत ही उत्तम हुआ। नाम मात्र प्रदानकर कोरा भेजने के लिए क्या वह प्रामीण राजा है ? नहीं ! नहीं ! उसी समय उन ब्राह्मणों को सुवर्ण, वस्त्र, आभरण, ग्राम, हाथी, घोड़ा, गाय आदि यथेष्ट दानमें देकर सस्कार किया। आहारदान, अभयदान, शास्त्रदान और औषधदान, यह तपस्वियोंको देने योग चार दान हैं । परन्तु सुवर्ण आदिको लेकर दस व चौदह प्रकारके पदार्थोका दान इन ब्राह्मणोंको देना चाहिये। इस प्रकार सत्कार करनेके बाद भरतजीने हर्षसे न फूल समाते हुए आत्मानुभवियोंके प्रति आदर व्यक्त करने के लिए उनको आलिंगन दिया । उस प्रकार साक्षात् सम्राटके आलिंगन देने पर उनको इतना हर्ष हुआ कि वे सोचने लगे हमारा जन्म सचमुच में सार्थक है। वे इसने फूल गये कि उनके हाथको दर्भमुद्रा अव कसने लगी। उन ब्राह्मणोंने हृषसे
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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