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भरतेश वैभव स्नान करता है । स्नान करनेकी दोनोंको कियामें कोई अंतर नहीं है। दोनों स्नान करते हैं, परन्तु तैयारीमें अन्तर है। इसी प्रकार मोक्षार्थी पुरुषोंमें कोई आज दीक्षा कर लेते हैं व अनेक कालतक तपश्चर्या ध्यानका अभ्यास कर मुक्तिको पाते हैं । परन्तु कोई-कोई घरमें ही रहकर मोहके अंशको क्रमसे कम करते हुए ध्यानका अभ्यास करते हैं। बादमें एकदम दीक्षा लेते हैं व थोड़ी सी तपश्चर्या व कुछ ही समयके ध्यानसे मुक्तिको प्राप्त करते हैं । मुक्ति पाने की क्रिया तो दोनोंकी एक है । परन्तु तैयारी में ही अन्तर है।
संसारमें कोई कठिनकर्मी रहते हैं ! कोई मृदुकर्मी रहते हैं 1 उनमें कठिनकर्मी अर्थात् जिनका कर्म तोव है, बाह्यसंग अर्थात् बाह्य परिग्रहको छोडकर आत्मदर्शन करते हैं । परन्तु मकर्मी अर्थात् जिनका मन्दकर्म है, वे तो बाह्य परिग्रहको रहने पर भी भेदविज्ञानसे आत्माको देखते हैं । फिर परिग्रहको छोड़कर परमशुक्लके बलसे मुक्तिको पाते हैं। ___ कोई बहुत कष्टके साथ निधिको पाते हैं तो कोई सातिशय पुण्यके बलसे निरायास ही निधिको प्राप्त करते हैं । इसी प्रकार कोई विशेष प्रयल कर आत्मनिधिको पाते हैं और कोई सुलभमें ही आत्मनिषिको पाते हैं। इस प्रकार मोक्षार्थी पायाम भी विविधता है।
मंत्रो ! विशेष क्या कहूँ ? यह परब्रह्म है। परमागमका सार है, द्विव्यतीर्थ है । इसलिए अकंप होकर चिद्रूप परमात्मामें मग्न हो जाओ । अनन्त सुखका अनुभव करो।
देहमें स्थित शुद्धात्माको जो देखता है उसके हाथमें कैवल्य है । वह संयमी, साहसी है, वीर है, कर्मोको जड़से काटे बिना वह नहीं रह सकता है । इसे विश्वास करो। परमात्माका आप लोग दर्शन करें। ध्यानरूपी अग्निसे काल और कर्मका भस्म करें। और तीन देहके भारको दूर करें और मुक्तिको प्राप्त करें। ___ मंत्री ! इसका श्रद्धान करना यही शुद्ध सम्यक्त्व है। उसे जानना वहो सम्यग्ज्ञान है, और उसीमें अपने मनको निश्चल कर ठहराना वही सम्यक्वारित्र है। यही रत्तत्रय है, जो कि मोक्षमार्ग है। अर्थात् आत्मतत्वको देखना, जानना व उसमें लीन होना यही मोक्षका निश्चित मार्ग है।
भरतेश्वरके मुखसे निकले हुए इस आत्म-तस्वके विवेचनको सुन कर महाँ उपस्थित सर्व सज्जन प्रसन्न हुए । मन्त्री मित्रोंने हर्षोद्गार