SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 511
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७ भरतेश वैभव क्या ? ऐसा न कोजिये। मैंने आपको क्या कष्ट दिया ? जरा कहिये तो सही। __ पुलन्दाले कहा कि बेटा : रे. निपार करते हो । बुढ़ापा है न ? अब तपश्चर्या करनो हो चाहिये । इसे स्वीकार करो | भरतेश्वर समझ गये कि अब यह नहीं रहेगी, दीक्षा लिए जायेगो तथापि उन्होंने प्रकट होकर कहा कि माता ! यदि बाहुबलोके पुत्रोंने मंजुरी दो लो आप जा सकती हैं। माता सुनंदादेवो भरतजीको ठोड़ीको हिलाकर कहने लगी बेटा ! उनके लिए तो मैं आजतक रही, अब क्या है ? बहानाबाजो मत करो, उनके लिए तुम हो न ? फिर मेरी क्या जरूरत है । मुझे भेजा। __ बेटा नगरफे पास गंधकुटी आई है, मैं बहुत ही बूढ़ी है। इसलिए तुम्हें पूछे बिना जानेमें डरती थी। अब तुम मुझे दीक्षा के लिए भेज दो, बेटा! जोजीको तुमने दीक्षा दिलाई। मुझे विघ्न क्यों करते हो? मुझे भी जोजी के साथ ही मोक्ष मंदिरमें आकर तुमसे मिलना है। इसलिए मुझे रोको मत, जाने दो। ___ मरतेश्वरने विवश होकर स्वीकृति दो । माता सुनन्दाने हर्षसे पुत्रको आलिंगन दिया व उसी समय गंधकुटोको और जाने के लिए भरतेश्वर माता सुनन्दाके साथ निकले।। भरतेश्वर व सुनन्दादेवो बाहुबलि स्वामीको गंधकुटोमें पहुंचे | वहाँ पर श्री बाहुबलि स्वामोके चरणों में वंदना कर उस माताकी पूजा में जिस प्रकार परिचारकका कार्य किया था उसो प्रकार आज इस मालाको पूजा में भी परिचारकका कार्य किया । उस दिन अनन्तवीर्य स्वामीको गंवकुटो में माता यशस्वतीके साथ मुनियों को वंदना जिस प्रकारको थी उसो प्रकार आज बाहुबलिस्वामीको गंधकुटोमें भो मुनियों को बंदना को । और उसी प्रकार माता सुनंदाका समारंभ बहत वैभवसे हुआ। विशेष क्या वर्णन करें। जिनपूजा, गुरुवदना बादि क्रियाके साथ अनेक मंगल निनादमें दोक्षा समारंभ आनन्दके साथ हुआ । बड़ी बहिनके समान छोटी बहिन भी संयमकांतिसे उज्ज्वल होकर आयिकाओंके समहमें विराजमान रही । पुत्र हो जब गुरु होकर जब माताको मोक्ष मार्गमें लगाते हैं। उससे बढ़कर महत्वकी बात और क्या हो सकती है | माता यशस्वतोको दाक्षा पुत्र--अनतवोर्य केवलोसे व माता सुनन्दाका दाक्षा पुत्र बाहुबलोसे हुई । यह आश्चर्य है।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy