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________________ ३६ भरतेश वैभव दिया है ? क्या मेरी आज्ञाके बिना व्रत लिया जा सकता है ? यह व्रत मेरी आज्ञासे लिया गया है या नहीं, परंतु मेरी बातको मानना क्या तुम लोगोंका धर्म नहीं है? प्राणनाथ ! हम लोगोंने देव-गुरुसाक्षीपूर्वक यह नियम नहीं लिया है । म त एर्नन हती हैं। सात आठ दिनसे हम अपनी इच्छासे यह नियम पालन कर रही हैं। भरतेश्वर बोले, ठीक है। गुरु, देव, साक्षीपूर्वक तो आप लोगोंने यह नियम नहीं लिया है, क्योंकि नियम देनेवाले गुरु आप लोगोंसे अलग हैं। फिर भी आप लोगोंमें यह व्रत है ऐसी कल्पना कर इसे क्या अबतक पालन किया है? क्या आप लोग इसे व्रतके रूपमें पालन कर रही हैं ? __ स्वामिन् ! इन व्रतपद्धतियों को हम क्या जाने ? व्रतग्रहणकी विशेष विधि आदिको आप ही जाने । पतिभक्त शेषान्नको भोजन करना हमको बहुत प्रिय लगता है। जिस प्रकार लोग प्रीतिसे व्रतपालन करते है, उसी प्रकार हम इसे प्रेमसे पालन करती आ रही हैं। हमारे हृदयमें कोई व्रतकी कल्पना नहीं। ____ अच्छी बात ! गुरुने आपको बत दिया नहीं. आप लोगोंने भी व्रत है ऐसी कल्पना नहीं की। केवल विनोदमें जो बात हुई है उसे व्रत कहकर क्यों हठ करती हो, यह समझ में नहीं आता | आओ ! हम सब भोजन करें। आप लोगोंको ध्यान रहे कि मैं अपने स्वार्थ व संतोषके लिये आप लोगोंके व्रतको कभी भंग नहीं करूँगा । इसमें आप लोगोंको संदेह न रहे, अतः मैं यह बात पितृसाक्षीपूर्वक कह रहा हूँ। अब आप लोग सब आवे। आपका कोई दोष नहीं है। देवियों ! आओ। आप सब लोग मिलकर मुनिमुक्त शेषान्नका भोजन करें। यह तो अमृतान्न है । आप लोग संकोचकर मेरे हृदयको क्यों दुखाती हैं ? समझ में नहीं आता । अब आप लोगोंको मैं करूणियाँ कहूँ या निष्करुणियाँ कहूँ, यह भी समझ में नहीं आता। अस्तु । निष्करुणी तरुणियो ! अब तो आओ! भोजन करें । बहुत देर हो चुकी है। इस प्रकार भरतेशने उन लोगोंको जरा लज्जित करते हुए कहा । इतने में सब स्त्रियोंने उनकी आज्ञापालनार्थ स्वीकृति दे दी और हर्षपूर्वक पतिके आदेशको शिरोधार्य किया। भला इसमें आश्चर्य ही क्या है ? जब षट्खंडके मनुष्यमात्र उनकी आज्ञा पालनमें तनिक भी
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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