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भरतेश वैभव
लोचना, कुरंगलोचना, सारंगलोचना, पुष्पमाला, श्रृङ्गारवती, गुणवती, चन्द्रमती, वीणादेवी, विद्यादेवी, सुरदेवी, वाणीदेवी, श्रीदेवी, बाणादेवी, भद्रादेवी, कल्याणीदेवी, अंजनादेवी, कुंकुमदेवी, मल्लिकादेवी, सुदेवी, उत्साहीदेवी, चित्रावती, चित्रलेखा, पद्मलेखा, ललितांगी, विचित्रांगी, कनकलता, कुंदलता, कनकमाला, जिनमती, सिद्धमती, रत्नमाला, मणिमाला, कांतिमाला आदिको बुलाकर कहने लगे कि आज हम सब माथ ही बैठकर भोजन करेंगे। ___ इतनेमे सभी स्त्रियाँ आकर हाथ जोड़कर कहने लगी कि हम लोगों का नियम है कि पतिके भोजनानन्तर ही हम भोजन करेंगी। अतः कृपाकर पहले आप भोजन कीजिए ।
भरतेशने कहा, यह नियम कैसा है ? आज मेरी बात सुनो। आओ सभी एक पंक्तिमें बैठकर भोजन करें।
सभी रानियाँ परस्पर मुख देखकर विचार करने लगी। सभीके विचार एक प्रकारके नहीं होते हैं । अतः वे सभी आपसमें छोटी बहिन बड़ी बहिनसे कहने लगी दीदी ! हम स्वामीकी आज्ञापालनार्थ साथ बटनर भोजन कमी को हममें सो नहीं होगा ? इस प्रकारको बात सुनकर एकने कहा कि जिस प्रकार स्वामी मुनिराजको आहार दिये बिना आहार नहीं करते, उसी प्रकार हम भी अपना धर्म क्यों छोड़ें ? पतिको भोजन करानेके पश्चात् भोजन करनेवाली स्त्री स्वर्गस्वामिनी होती है । अतः एकसाथ भोजन करना ठीक नहीं है ।
एकने कहा- यदि हम स्वतः भोजन करें तो दोष है, कितु यहाँ तो वे स्वतः भोजन करनेके लिये कहते हैं। इसलिये इसमें कोई दोष नहीं है।
इतनेमें फिर एकने कहा-इनको हमारे ही कारण भोजनके लिये इतनी देरी हो रही है। कोई-कोई मनमें ही विचार करने लगी कि इतनी देरसे कह रहे हैं परंतु क्या किया जाय । पतिको उत्तर देना अधर्म है । इसलिये कुछ समझमें न आनेके कारण कोई तो गंगीके समान चुपचाप रही, और कोई अपने ही मनमें अनेक प्रकारसे चिंता करने लगी। कोई एक दो बातें भी करने लगी।
इस प्रकार वे सब राजमहिलाएँ कर्तव्यविमूढ होकर विचार कर रही हैं कि इतने में उनके अभिप्रायको समझकर श्री भरतेश बोलने लगे कि देवियों, आओ, इधर आओ, आप लोगोंको यह बत किस गुरु ने