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भरतेश वैभव हुए वे चलने लगे। परोंमे सोनेकी खडाऊ पहने हुए तथा अपनी प्रवीणताको दिखाते हुए वे धीरे-धीरे लीलापूर्वक चलने लगे।
मेरे घर आज उत्कृष्ट पात्रका दान हुआ है, इस प्रकार मनमें आनन्दित हो सेवकोंका आदर-सत्कार करते हुए उन्होंने महल में प्रवेश किया। तदनन्तर एक नौकरको बुलाकर कहा "जाओ उस सोने की राशिमेसे सोना निकालकर पुरवासी गरीबोंको तथा भिक्षुओंको यथेच्छ दे दो'' इस प्रकार आज्ञा देते हुए के महलके अन्दर गये ।
इश्वर उनकी रानियां मुनियोंके गुणोंको स्तुति करती हुई तथा दान में हुए अतिशयोंसे हर्ष मनाती हुई पतिके आगमनकी प्रतीक्षा करने लगी । इतने में अपने सामने पतिकी चमकती हुई मुखकी कांतिको देखकर चक्रवर्तीकी सभी स्त्रियाँ परस्पर बातचीत करने लगी।
आज राजाधिराज ( स्वामीका ) भरत चक्रवर्तीका मन बड़ा प्रफुल्लित है । ऐसा मालूम होता है कि इनको कोई उत्तम वस्तु प्राप्त हुई है।
फिर आपसमें कहने लगी बह्नि ! तुम उनके मुखको तो देखो तब ज्ञात होगा कि मेरा कहना सच है या झूट। इस प्रकार वे परस्पर कहने लगी । कोई-कोई कहती है कि तुम्हारी बात सच है। झूठ नहीं है। इस प्रकार हम लोगों को भी देखने में आता है। ऐसा कहती हई सबकी सब आनंदित होती हैं। कोई-कोई कहती है कि अपने आप परस्परमें संदेहास्पद बात करने में कुछ प्रयोजन नहीं है, अतः चलो, स्वामीके पास जाकर अपने संदेहको दूर करें। __इतने में सभी स्त्रियाँ भरत चक्रवर्तीके पास जाकर पूछने लगी, हे नाथ ! आपके मुख की प्रसन्नता देखकर हमारे मनमें जो भाव उत्पन्न हुआ है, वह सच है या झूठ? तब उन्होंने कहा सच है मेरे हृदयके भावोंको तुम लोगोंके सिवाय और कौन जान सकता है यह कहकर भरतेश्वरने कहा कि चलो अब हम सब भोजन करें।
तदनन्तर पादप्रक्षालन करके जब वे भोजन करने गये तब अपने योग्य ही भोजनकी तैयारी दम्खकर वहीं खड़े होकर सोचने लगे आज बहुत देर हो गई अतः सभी रानियोंके साथ ही भोजन करना ठीक है। यह सोचते हुए निम्नलिखित नामोंसे सबको प्रेमपूर्वक पुकारने लगे। कन्नाजी, कमलाजी, विमलाजी, सुमन्नाजी, होन्नाजी, मधुराजी, रत्लाजी, चेनानी, चिनाजी, कांताजी, मुकुराजी, कुमुमाजी, संताजी, मधुमाधथाली, अन्तरंगाजी, सखाजी, सुखवती, शांताजी, भृङ्गलोचना, नील