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________________ भरतेश वैभव यह ऊपर ही कह चुके हैं अयोध्याके उस महलमें प्रतिनित्य आनन्द का तांता ही लगा रहता है । एकके बाद एक इस प्रकार हर्षके कार हर्ष आते रहते हैं। भानुराज व विमलराजके जानेके बाद एक दो दिन में ही एक और हर्ष का समाचार आया । नगरके उगनमें रहनेवाले ऋषिनिवेदकने आकर निवेदन किया कि स्वामिन् । तेलगु, कर्नाटक, हुरमजी, सौराष्ट्र, गुर्जरादि देशोंमें विहार करती हुई केवलो अनन्तवीर्य स्वामोकी गंधकुटी यहां पर आ गई है। आकाशमें सुरभेरो बज रही है। सभी जय-जयकार शब्द कर रहे हैं, सर्वत्र प्रकाश फैल गया है । सूर्यका बिबडी खड़ी है, आकाशमें खड़ा हो उस प्रकार वह गंधकुटो आकाशमें नगरके बाहर खड़ी है, आश्चर्य है। भरतजोको यह समाचार सुनकर परम हर्ष हुआ। उस समाचार लानेवालेको परमोपकारो समझकर अनेक वस्त्र रत्नादिक प्रदान किया गया । एवं जिनदर्शनके प्रस्थानके लिए तैयारी की गई । महल में सबको यह समाचार मालूम हुआ, हर्षसे सब लोग नाचने हो लगे। अंतःपुरमें मैं आगे, मैं आगे, इस प्रकार अहमहमिका वृत्ति चल रही है। माता यशस्वतीदेवी तो आनन्दसे फलो : समाई। रानियोने वहांपर जानेको इच्छा प्रकट की। __ परन्तु देव मनुष्योंकी असंख्य भीड़में सम्राट् उनको क्यों ले आने लगे? इसलिए सबको कोमल बचनोंसे समझा-बुझाकर शांत किया, परंतु माता यशस्वती ने कहा कि बेटा ! मेरे शिरमें तो एक भी कृष्णकेश नहीं हैं अब बिलकुल बुड्ढी हो गई हूँ। ऐसी हालत में मैं अहतका दर्शन करू इसमें क्या हर्ज है ? नगरके पास जब गन्धकुटो आई है मैं दर्शनसे क्यों वंचित रहूँ ? माताके हर्षातिरेकको देखकर सम्राट् संतुष्ट हुए व उन्होंने गंधकुटीमें चलनेके लिए सम्मति दी। आनंदभेरी बजाई गई। भरतजीने अपनी पूज्य माता व पुत्रोंके साथ बहुत आनन्दके साथ गंधकुटीको प्रवेश किया । पुरजन परिजन पूजा सामग्री विपुल प्रमाणमें लेकर उनके साथ जा रहे हैं। गंधकुटीमें वेत्रघर देव भरतजी का स्वागत कर रहे हैं। भरतराजेंद्र ! आओ युवराज ! तुम भी आओ, और बाको सभी कुमारोंका भी स्वागत है । आप लोग भाइये अरहंत भगवंत अनन्तबीयंका दर्शन कीजिये। इतने में जब उन वेत्रधारियोंने माता यशस्वतीको देखा तो कहने लगे कि जिन जिना ! लोकजननी जिनजननी हो आ गई है। हम लोग बहुत ही भाग्यशाली हैं । हमारी आँखोंका पुण्य है कि उनका दर्शन हुआ । इस २-४
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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