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________________ भरतेश वैभव युबराजके प्रस्थानसंभ्रमका क्या वर्णन करें । संक्षेपमें कहें तो अठारह लाख अक्षौहिणी सेनाको सम्पत्तिसे युक्त होकर यवराज जा रहे हैं सबसे आगे सेनाके साथ अष्टचंद्र जा रहे हैं। साथ ही मंत्रिगण भी हैं । युवराजके साथ आदिराज है ! साथमें श्वसुर भी हैं। इस प्रकार बहुत वैभवसे युक्त होकर पिताके चरणोंके दर्शनमें उत्सुक होकर युवराज जा रहे हैं । दक्षिणसे उत्तर मुख होकर अनेक देशोंमें विहार करते हुए युवराज जा रहे हैं । अब अयोध्याको सिर्फ २०० कोस बाकी है । वहाँपर सेनासहित युवराजने मुकाम किया है। ___ उस मुकाममें अयोध्यासे एक दूतने आकर वहाँके सर्व वृत्तांतको कहा । एवं एकांत में नागरीक पीसे बोतमारा दिल वह भी कहा । उससे दोनों राजकुमारोंको बड़ा हर्ष हुआ। साथमें यह भी मालूम हुआ कि नागरांककी बातचीतके सिलसिले में युवराजके श्वसुरोंको सम्राट्ने "राजा" इस उपाधिसे सम्मानित किया है। वे भी इसे सुनकर बड़े ही प्रसन्न हुए । परन्तु उन्होंने उसे बाहर व्यक्त नहीं किया, सिर्फ इतना ही कहा कि चक्रवर्ती हमें चाहे जैसे बुलावें हम तो प्रसन्न है । ___ अब अकोति अयोध्यापुरके समीप पहुंच गए हैं। उसे सुनकर भरतजीको बड़ा आनन्द हुआ ! उसी समय वृषभराजको बुलाकर मंत्री मित्रों के साथ स्वागत के लिए जानेको आज्ञा दी। वषभराजको यह सूचना मिलते ही बाकीके सभी भाई तैयार होकर जाने लगे । जैसे ब्राह्मण दान लेनेके लिए भागते हों, उसी प्रकार ये भी उत्साह से जा रहे हैं । अपने बड़े भाईके प्रति उनका जो असीम प्रेम है वह अवर्णनीय है। तीस हजार सहोदर हैं। सब मिलकर भाईको देखनेके लिए बड़े आनन्द से जारहे हैं। कोई हाथीपर, कोई घोड़ेपर और कोई पल्लकोपर चढ़कर जा रहे हैं। इस प्रकार छत्र, चामर, ध्वज, पताका वगैरह मंगल द्रव्योंके साथ वे राजकुमार बड़े भाईकी ओर जाते हैं । वृषभमहाराजको आगे करके सब उसके पोछे विनयसे जिस समय वे जा रहे थे उस उत्सवको देखते ही बनता था। वृषभराजने जाफर अनेक उत्तमोत्तम भेंट युवराजके चरणों में रखकर नमस्कार किया इसी प्रकार सर्व भाइयोंने किया। ___ अर्ककीर्तिने सबको देखकर हर्ष व्यक्त करते हुए कहा वृषभराज ! आओ, तुम कुशलसे तो हो न? हंसराज ! तुम सौख्यानुभव करते हो न ? निरंजनराज ! सिद्धराज ! आओ तुम सुखस्थानपर हो न ? बलभद्रराज ! भास्करराज ! शिवराज ! अंकराज ! श्रीराज ! ललितांगराज ! लावण्य
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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