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________________ भरतेश वैभव राज ! तुम्हें सब क्षेम तो है न? इसके सिवाय और जो भाई हैं वे सब कुशल तो हैं ? सब भाइयोंका कुशल समचार पूछा एवं सबको अपने पाग बुलाकर उन्हें एक एक रत्नहार दिया । उन भाइयोंने अकोतिगे निवेदन किया कि हम तो मदा कुगल से हैं, परन्तु आप दोनों के दर्शनसे और भी कुशलताकी वृद्धि हुई । इस प्रकार बहते हुए पुनः प्रणाम किया । साथमें आये हुए माताओंके चरणों में भी नमस्कार किया। उनके विनयका क्या वर्णन करें। अष्टचंद्रराज व मंत्रियोंने इन सब कुमारोंको नमस्कार किया । इसी प्रकार उपस्थित अन्य राजकुमार, मत्री, मित्र व परिवार प्रजाओंको दोनों कुमारोके चरणों में भेंट रखकर नमस्कार किया | आगत सब लोगोंके साथ यथायोग्य मृदु वचनसे बोलकर अककोति हाथोपर पुनः चढे । जयघोष नामक हाथीपर अकंकीति दुदंभिधोष नामक हाथीपर आदिराज व बाकी सभी भाई एक एक हाथीपर चढ़कर नगरी मोरनार शेनों प्रकार के मंगल वाद्य बज रहे हैं । अयोध्या नगरमें प्रवेश कर जिस ममय राजमार्गस होकर जा रहे थे वह शोभा अपार थी। विश्वम्तोंके साथ अपनी रानियोंको पहिलं महलकी ओर भेजकर स्वतः यवराज व आदिगज जिन मंदिरको दर्शन करने चले गये 1 वहाँसे फिर हायोपर चढ़कर अपने पिताके दर्शन के लिए गये । जाते समय उप विशाल जुलूसको नगरवासीजन बहुत उत्सुकताके साथ देख रहे हैं। स्त्रियो अपने-अपने महल को माडीपर चढ़कर इस शोभाको देख रही हैं। कोई माडीपर, कोई गोपुरपर, कोई दरवाजेसे, कोई मंदिर पर चढ़कर आकाशसे देखनेवाली खेचरियोंके समान देख रही हैं। एक कुमारको देखनेवालो आँख वहसि हटना ही नहीं चाहती है, कदाचित् हट गई तो दूसरों की तरफसे हटाई नहीं जा सकती है, परन्तु आगे जानेपर हटाना पड़ा, इसलिए वे स्त्रियाँ दीर्घश्वास लेने लगीं। कामदेव स्वतः अनेक रूपोंको धारण कर तो नहीं आया है ? जब इनका सौन्दर्य इतना विशेष है । तो इनके माता-पिताओके सौंदर्यका क्या वर्णन करना । हमारे स्वामी सम्राट् कितने भाग्यशाली हैं। उन्होंने ऐसे विशिष्ट लोकातिशायी संतानको प्राप्त किया है। मानव लोकमें ऐसे कोन हैं ? लोकमें जितने भी उत्तम पदार्थ हैं, उन सबकी लूटकर हमारे राजा लाए हैं । परन्तु इन सब पुत्रोंको देखने पर मालूम होना है कि देवलोकसे सुर कुमारोंको लूटकर लाया हो । एक भी खराब मोती न हो, सभी
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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