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________________ भरने बेशव कहा कि जयकुमार ! अपने पूर्व जन्म के पापोदय से थोड़ी देर वैषम्य उपस्थित हुआ । परन्तु वह पुण्य तंत्रसे तत्काल दूर भी हुआ । ऐसी हालत में आगे उसे अपनेको मनमें नहीं रखना चाहिये । अष्टचंद्र व दुष्ट मंत्रोने जो विचार किया था वह सचमुच में भारी अपराध है परन्तु उसे आदिराजने सुधार लिया । इसलिए उस बातको भूल जाना चाहिये। कदाचित् पिताजी को मालूम हुआ तो वे नाराज होंगे। जयकुमार ! विशेष क्या कहूँ, हम लोग तो पिताजीको कष्ट देकर उत्पन्न हुए पुत्र हो । परन्तु तुम लोग तो बिना तकलीफ दिये ही आये हुए पुत्र हो । इसलिए सहोदरोंमें आपस में संक्लेश आवे तो भी उसे दूर करना चाहिये। आप लोग, हम व अष्टचंद्र वगैरह सभी राजपुत्र हैं, क्षत्रिय हैं, फिर गवारोंके समान हम लोगों का व्यवहार क्या उचित है ? समान वर्ण में उत्पन्न हम लोगों में इस प्रकारका क्षोभ होना योग्य नहीं है । 3: युवराजके मिष्ट वचनों को सुनकर सबके हृदय में शांति हुई । सब लोगोंने अष्ट चंद्रों के साथ युवराजके चरणों में नमस्कार किया व विनयसे कहा कि स्वामित् ! आदिराजने ही पहिले हम लोगों के चित्तको शांत किया था। अब आपके सुन्दर वचनोंसे रही सही वेदना एकदम चली गई । युवराजने कोरी बातोसे ही उनको संतुष्ट नहीं किया, अपितु मेघराज को अपने पास बुलाकर पचास लाख मोहरोंसे सम्मान किया। इसी प्रकार 'विजयराजको तीस लाख व जयंतराजको बोस लाख देकर अनेक उपहारोंको भो अर्पण किया । तदनंतर आदिराजने भी मेघेशको २५ लाख, विजयराजको १५ लाख क जयंतको १० लाल अपनी ओरसे दिया व बहुत आनन्दसे उनकी विदाई की। सबके हृदयका वैषम्य दूर हुआ । अब बानन्द ही आनन्द है । उन लोगोंने युवराजको भक्ति से नमस्कार किया व वहांसे चले गये । वे क्या - सामान्य हैं ? चक्रवर्ती के हो पुत्र हैं, वहीपर फिर किस बात की कमी है ? I इसी प्रकार युवराजने अनेक देशके राजाओंका उनकी योग्यतानुसार सत्कार किया च महलमें जानेपर राजा अकंपनने युवराजका सत्कार किया व युवराजने अपनी युवराज्ञीके साथ बैठकर भोजन किया। युबराज की पत्नी लक्ष्मीमतिको एक सौ भाई हैं। उन सबके साथ राजा अकंपनने युवराजका सरकार किया। अपने श्वसुरसे यथेष्ट सत्कार पाकर युवराजने आगे के लिए प्रस्थान किया ।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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