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________________ भरतेश वैभव स्त्रीकी अपेक्षा कर सकता है ? कभी नहीं। अपन सुनी हुई बातें सब हवा की हैं । इसलिए आप भूल जाइये । पाशसे यदि युबराजको बाँधा तो क्या जयकुमार बच सकता है ? अष्टचंद्र राजाओंको थोड़ो सो तकलीफ जरूर हुई । परंतु उसी समय दूर भी हो गई। इस प्रकार वहाँके सारे वृत्तान्तको यथावत कहा ! __सनाट्ने भो कहा कि तुम बैठकर आगे क्या हुआ बोलो। तब नागरांकने तीन करोड़ पदार्थोसे उसका सत्कार हुआ उसका वर्णन किया तब सम्राट्ने कहा कि वह तुम्हारे लिए जेबखर्च है। __नागगंकने पुनः कहा कि स्वामिन् ! यह सब बातें जाने दो, मोहको विचित्रताको देखिएगा । मेरे वहाँपर पहुंचने के पहले ही युद्धके समाचार को सुनकर भानुराज विमलराज वहाँपर पहुँच गये थे व अपने भानजोंके साथमें मिले हुए थे। पिताजोके विचारसे पहले हो उनके मामा उनके पास पहुंचे ऐसी अवस्था में पुत्रोंको माता-पिताको अपेक्षा मामा हो अधिक प्रिय हैं । भरतजीका हृदय भी यह सुनकर भर गया, अपने स्यालकोंके आप्ततत्त्वको विचार करते हुए हर्षित हुए। इसके लिए उनका योग्य सत्कार करना चाहिए यह भो उन्होंने मनमें निश्चित किया। तदनंतर प्रकट रूपसे बोले कि अनुकूल ! कुटिल ! दक्षिण ! शठ ! पोठमर्दन ! व मंत्रो! आप लोग सुनो, हमारे पुत्रों को सहायताके लिए उनके मामा पहुँने यह बहुत बड़ी विनय नहीं क्या ? तब उत्तरमें सबने कहा कि स्वामिन् ! भानुराज विमलराज नगरमें स्वत: काशीके राजाने पहुंचकर आमंत्रण दिया तो भो वे वहाँ पहुँचनेवाले नहीं हैं । अपनो महताको भूलकर वे अब अपने भानजोंके प्रेमसे ही वहां पर पहुंच गए हैं । सचमुचमें उनका प्रेम अत्यधिक है । ___ सम्राट्ने यह भी विचार किया कि हमें जिस प्रकार हमारे मामाके प्रति प्रेम है उसी प्रकार अर्ककीर्ति और आदिराजको भी उनके मामा के प्रति प्रेम है । इसलिए उसका सत्कार होना ही चाहिये। उन दोनों को मैं राजाके पदसे विभूषित कर दूंगा । इससे अर्ककोति व आदिराज प्रसन्न हो जायेंगे। सब लोगोंने कहा कि विलकुल ठीक है । ऐसा ही होना चाहिये, पहिले नागरांकने भी इसी अभिप्रायसे उनको निमंत्रण दिया प्रा।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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