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________________ ३८ भरतेश वैभव युवराजके साथ जिस प्रकार नागरांकने विनय व्यवहार किया उसो प्रकार आदिराजके साथ भो करके काशीके राजा अपनके महलम पहंचा वहाँपर अनेक संतोषके व्यवहारके साथ शामका भोजन किया । भोजन के बाद राजा अकंपनने दस लाख उत्तमोत्तम वस्तुओंस उसका सत्कार किया। वहाँसे जयकुमार उसे अपने महल में ले गया और वहाँपर पच्चीस लाख रथ रत्नादि उत्तम पदार्थोसे उसका सत्कार किया गया । इसके अलावा छप्पन देशके राजा व अष्टचंद्र राजाओंने मिलकर एक करोड़ पैंसठ लाख उत्तम पदार्थोको देकर सत्कार किया। विशेष क्या ? तीन करोड़ उत्तम द्रव्योंसे उसका वहाँपर सत्कार हुआ। छह खंडके अधिपतिके मिश्रको तीन करोड़ उपहार द्रव्योंसे सत्कार हुभा । इसमें आश्चर्य की क्या बात है। चाँदनीकी रात है, नागरांक अपने परिवारके साथ विमानपर चढ़कर आकाशमार्गसे रवाना हुआ । जिस समय उस शुभ्र चांदनीमें अनेक विमान जा रहे थे उस समय समुद्र में जहाज जा रहे हों ऐसा मालूम हो रहा था। आकाशमार्गसे आने में देर क्या लगती है ? अनेक गाजेबाजे के साथ अयोध्या मगरमें वह नागरांक प्रविष्ट हुआ । भरतजी चितामग्न होनेके कारण उस समय दरबार वगैरहमें नहीं बैठते थे। वे अपने मंत्रीमित्रों के साथ बैठकर वार्तालाप कर रहे थे । इतने में बाजेका शब्द सुनाई दे रहा था ! सबने समझ लिया कि नागरांक वापिस लौटा है । और उसका आगमन हर्ष को सूचित्त करता है । नागरांकने भी विमानसे उतरकर सबको अपने-अपने स्थानमें भेजा। और स्वयं चक्रवर्ती जहाँ विराजे थे वहां पहुंचा। ___ वहाँपर पहुंच ही चक्रवर्तीके चरणोंमें नमस्कार कर कहने लगा कि सबको सदा आनन्द उत्पन्न करनेवाले हे प्रथमचकेश ! स्वामिन् ! पहिले जो भी समाचार सुने गये हैं वे सब खोटे हैं। क्षुद्र स्वयंवरको महापुरुष लोग जा सकते हैं क्या ? आपका पुत्र भी ऐसे स्वयंवरको कैसे जा सकता है ! परन्तु राजा अकंपनने ही एक कन्याको लाकर विवाह किया है । यह भी जाने दो, कल जो इस पृथ्वीका अधिपति होनेवाला है, वह क्या सन्मार्गको छोड़कर चल सकता है? दूसरोंके गले में माला डाली हुई
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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