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________________ मस्तेश वैभव भी रुका तो पिताओको अधिक चिन्ता होगी। इसलिए उसको अब रोकना नहीं चाहिये । जाने दो। ___ तब सब लोगोंने कहा कि शाबाश आदिराज हमारे स्वामीके पिताके नामको तुम अलंकृत कर रहे हो इसलिए तुमने मसमुच में अच्छी बात कही । सब लोग इस बातको मंजूर करेंगे । अर्ककोतिने कहा कि ठीक है, तुम आज ही जाओ, अभी प्रातःकाल का भोजन हमारे महल में करो और शामका व्यालू राजा अकंपनको महलमें करके प्रस्थान करो। सब लोगों ने इसे स्वीकार किया । सब लोग वहाँसे अपने अपने स्थान पर चले गये । नागरांकके साथ आई हुई सेनाको सत्कार करनेके लिए अष्टचंद्रोंको नियत करके अपने आगत मित्रके साथ युवराज महलमें प्रविष्ट हुए। जाते समय आदिराजने नागरांकसे कहा कि मित्र ! तुम प्रस्थानके समय मेरे पास भी आकर जाना । युवराजने अपने महलमें पहुंचकर अपने मामा भानुराजको भी बुलवाया, एवं नागरांक व भानुराजके साथ मिलकर भोजन किया। भोजनके अनंतर अपने पिताका मित्र होनेसे हाथी, घोड़ा, रथ, रल आदि ७० लाख उत्तमोत्तम पदार्थोको भेटमें नागरीकको समर्पण किया । नागरांक युवराज के सत्कारसे भरपूर तृप्त हुआ। और हाथ जोड़कर कहने लगा कि युवराज ! मेरी और एक इच्छा है। उसकी पूर्ति होनी चाहिए । अर्ककीर्ति ने कहा कि अच्छा ! कहो, क्या बात है। नागरांफने कहा कि यदि तुम्हारे मामा भानुराजने उसे पूर्ति करनेका वचन दिया तो कहूँगा । तब हंसते हुए भानुराजने कहा कि कहो, मैं किस पातके लिए इनकार कर सकता हूँ। तब हर्षसे नागरांकने कहा कि और कोई बात नहीं है। तुम्हारे साथ मानुराज भी अयोध्या नगरीमें आयें एवं सम्राट्को मिलकर जावें । इतनी ही बात है। इस बातका रहस्य भानुराजको मालूम न होनेपर भो युवराजको मालूम हुआ। उन्होंने कहा कि ठीक है, क्या बात है, मैं उनको साथमें लेकर आऊंगा। नागरांक अर्ककीतिको नमस्कार कर आदिराजको महलपर पहुंचा। वहाँपर आदिराजके मामा विमलराजसे भो मिल वहाँपर आदिराजने तीस लाख उत्तमोत्तम पदार्थोसे नागरांकका सत्कार किया ।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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