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________________ ३४ भरतेश वैभव अकंपनने स्वयंवर महोत्सव कराया था उसमें देश-देशके अनेक राजे उपस्थित थे । उस स्वयंवरमें सम्राट्के भी पुत्र गये । कन्याने मेघराजके गले में माला डालकर हाथीपर सवार होकर जब नगर प्रवेश कर चको तब दुःखित हुए अनेक राजा व उद्दण्डमतिने इस पर एतराज किया। युवराजके होते हुए यह सुन्दर कन्या दूसरोंको नहीं मिल सकती है । इस बातको तुमने भी स्वीकार किया। बादमें युद्ध हुआ 1 दोनों तरफसे घोर युद्ध हुआ। अष्टचंद्र भी स्वर्गांगनाओंके कुचशरण हुए । एक बात और सुनी, परन्तु मैं आपके सामने उसे कहनेके लिए डरता हूँ। तब अकीतिने कहा कि डरो मत बोलो, तुम्हें मेरा शपथ है । तब नागर पुनः बोला बात क्या है ? नागराजने तुम्हें नागपाशसे बांधकर मेघेशको दे दिया है। हम लोगोंको बड़ी चिंता हुई। सम्राट भी इस समाचारको सुनकर दुःस्रो हए । इतने में समाचार मिला कि युद्ध के अनंतर राजा अकंपनने एक कन्या जयकुमारको देकर दूसरी कन्या के साथ युवराज का विवाह कर दिया। सम्राट्ने इन सब समाचारोंको सुनकर कहा कि एकदफे क्रिसोके गले में वन्याने माला डाल दी तो वह कन्या परस्त्री हो गई, जिसमें जयकुमार मेरे पूत्रके समान है। ऐसी अवस्थामै अर्ककीर्तिने यह ऊधम क्यों मचाया ? यह उचित नहीं किया। इसलिए अभी इसका विचार होना चाहिये । तब भरतजीने मुझे आज्ञा दी कि नागर ! अभी तुम जाकर सर्व वृत्तांतको समझकर आओ। इसलिए मैं यहाँपर आया, यह कहकर नागर चुप हो गया। यह सब सुनकर अर्कीतिको आश्चर्य हुआ, नाकपर उंगली रखकर अर्ककीर्ति कहने लगा कि हाय ! परमात्मन् । पापके वशसे यह लोकमें अपकीति मेरी हुई। नागरांक ! अष्टचंद्र व उदंडमति मंत्रीको नागपाशका बंधन हुआ था, यह मत्य है । उसो समय वह दूर भी हो गया। बाकीके राव अपवाद मिथ्या हैं । मित्र नागरांक हम दोनों भाई स्वयंवर मंडपमें गये ही नहीं थे । परस्त्रीके प्रति हमने अभिलाषा भी नहीं की थी । बीचके राजाओंके कारण यह सब युद्ध हुआ | आदिराजने उसी समय बेद' करा दिया । मझे व जयकुमारको अलग अलग कन्याओंको देकर सत्कार किया यह बात बिलकूल सत्य है। इसी प्रकार अष्टचंद्र राजाओंको भी अलग अलग कन्याओं को देकर सत्कार किया। यह भी सत्य है । मित्र में क्या राजमार्गको उल्लंघन कर चल सकता हूँ ! यदि मैं अनीति मार्गमें जाऊँ तो
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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