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भरतेश वैभव क्या भाई आदिराज उसे सहन कर सकता है ? कभी नहीं ? हम लोगोंको परदारसहोदर कहते हैं, फिर वह कैसे बन सकता है ?
जिस समय पिताजीने दिग्विजय किया था उस समय जयकुमारने अपने भाइयों के साथ जो सेवा बजाई थी वह क्या थोड़ी है ? यदि मैं उसे भूल जाऊं तो क्या मैं चक्रवर्तीका पुत्र कहला सकता हूँ? हम लोग तो पिताजीकी सम्पत्तिको भोगनेवाले हैं, परंतु खजानेको भरनेवाला जयकुमार है । विचार करनेपर हम सब लोगोसे बढ़कर यही पिताजोके लिए पुत्र है, वह सेवक नहीं है।
दिग्विजयके प्रसंगमें जब धूर्तदेवताओंको जयकुमारने मार भगाया तब पिताजीने आलिंगन देकर उससे कहा था कि तुम अर्कफोतिके समान हो, उसे मैं भूला नहीं हूँ। ऐसी अवस्थामें उसके प्रति मैं यह कार्य कैसे कर सकता हैं ? पिताजीने जयकुमारको पूत्रके समान माना है, वह कभी अन्यथा नहीं हो सकता है । आज हम लोग साळु बन गये हैं। यह उसीका अर्थ है 1 पिताजी ने जो उस दिन कहा था उस वचनको अन्यथा नहीं करना चाहिये इस विचारसे काशीके राजा अकंपनने आज हम लोगोंका सम्बन्ध कर दिया । इस प्रकार अपने गुरको संतुनः गाते दुर सागति ने कहा।
अकंकीतिके वचनको सुनकर जयकुमार, विजय, जयंत उठकर खड़े हुए एवं आनन्द के साथ कहने लगे कि स्वामिन् ! हम लोग आपके हृदय को जानकर अत्यन्त प्रसन्न हुए हैं । हम लोगोंने क्या सेवा की है। आपके पिताजीके प्रभावसे ही दिग्विजय सफलतासे हुभा ! हम लोग आपके सेवक हैं। परन्तु आपने हमें साढू बनाकर जो अपने बड़े हृदयका परिचय दिया है इससे हमारी आत्मा आपकी तरफ आकर्षित हो गई है । उस दिन आपके पिताजी ने जो हमारा आदर किया था एवं आज आपने जो हमारे प्रति प्रेम व्यक्त किया है, इसके लिए हम लोग क्या कर सकते हैं ? संदेह नहीं चाहिये, हम लोग अपने शरीरको आपकी सेवामें समर्पण कर देते हैं। ____इस प्रकार कहते हुए तीनों भाई युवराजके चरणोंमें नमस्कार कर उठे।
अकंपन राजाने भी अपने मंत्रीके द्वारा युवराजको नमस्कार कराया। वह स्वयं बैठा हो हुआ था । पहिले तो वे युवराजको नमस्कार करते थे। परन्तु अब वह कन्या देकर श्वसुर बन गये हैं । इसलिए अब मंत्रीसे नमस्कार कराया है । कन्यादानका महत्व बहुत विचित्र है।