________________
मरते बंभव
यह सुनकर अफंकीतिको थोड़ी हंसी आई और कहा कि ठोक है। जाओ, आप लोग अपने आनंदको मनावें। तब उन लोगोंने कहा कि स्वामिन् ! आपका विवाह ही हमारा आनंद है। सब लोगोंको जानेके लिए आज्ञा दी गई, अपने अपने स्थानपर पहुंचकर सबने विश्रांति ली।
दूसरा दिन स्नान-भोजनादिमें व्यतीत हुआ। रात्रि विवाहके लिए तैयारी की गई। पाणिग्रहणके लिए योग्य मुहूर्तमें लक्ष्मीमतिको शृंगार करके विवाह मण्डपमें उपस्थित किया।
लक्ष्मीमति परमसुन्दरी है। युवती है, अत्यन्त कोमलांगी है । अथवा. श्रृंगाररान है. श्रीरूपी धार किया ही देता मालूम हो रही थी।
भरजवानी, सिंहकटी, मृगनेत्र, हंसमुखी, पोनस्तन, दीर्घबाहु, इत्यादि. से वह परम सुन्दर मालूम हो रही थी | शायद युवराजने इसे तपश्चर्यासे ही पाया हो । विशेष वर्णन क्या करें? देवांगनाओंने उसे एक दफे देख लिया तो दृष्टिपात होनेको संभावना थी।
उसे लक्ष्मीमति कहते थे । परन्तु लक्ष्मी तो उसकी बराबरी नहीं कर सकती थी। क्योंकि लक्ष्मी तो चाहे जिसको पसन्द करती है | परन्तु लक्ष्मीमति तो युवराज अर्ककीर्ति के लिए ही निश्चित कन्या थी।
स्वयंवरकी घोषणा देकर सबको एकत्रित किया जाय तो अनेक राजपुत्र अपनेको चाहेंगे। अन्तमें माला किसी एकके गले में ही डालनी होती है, यह उचित नहीं है। क्योंकि स्वयंवर हमेशा अनेकोंके हृदयमें संघर्षण पैदा करनेवाला होता है। इसलिए लक्ष्मोमतिने स्वयंवर विवाहके लिए निषेध किया। इसीसे उसके हृदयको गम्भीरताको जान सकते हैं।
स्वयंवरमें सुन्दरपतिको ढूंढ़ने के लिए सबको अपने सुन्दर शरीरको दिखाना पलता है। इस हेतुसे जब वह अत्यन्त गूढ़रूपसे रहो उसकी तपश्चर्याके फलसे अत्यन्त सुन्दर र सम्राट्के पुत्र अर्ककीति ही उसके लिए पति मिला, यह शील पालनका फल है। सुलोचनाने स्वयंवर-मण्डपमें पहुँधकर अनेक राजाओंको देखकर भी एक सामान्य क्षत्रियके साप पाणिग्रहण किया। परन्तु लक्ष्मीमतिके लिए तो पट्खण्डाधिपतिका पुत्र हो पति मिला । सचमुच में इसका भाग्य अधिक है।
विशेष क्या वर्णन करें। वसन्तराज वनमें जिस प्रकार कामदेवको रतिदेवीको लाकर समर्पण करता है उसी प्रकार काशीपति अकंपनने