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भरतेश वैभव चाहिये । मैं जानता है कि इन लोगोंने बहुत बुरा काम किया है। उसके लिए योग्य शासन हो सकता है, परन्त शासन करनेपर वे निगड़ जायेंगे। कुलपक्षको लक्ष्यमें रखकर अपनेको इस प्रकरणको भलाना चाहिये । एक बात और है, भाई अर्ककीतिके लिए कन्या ले आवेंगे, इस वचनको देकर वे आये हैं । अब उनकी बात रहे इसका क्या उपाय है।
फाशीक राजा अपनने सन्तोषकं साथ कहा कि मेरी और एक कुमारी कन्या है । उसे युवराजको समपंण करूँगा। इससे भी वह सुन्दर है । स्वयंवरसे ही उसका विवाह करना चाहता था, परन्तु उसने न मालूम क्यों इनकार किया।
तब आदिराजने कहा कि ठीक है। वह भाईके लिए योग्य कन्या है। आदिराजने यह भी कहा कि अष्टचंद्र व अयकुमारको इस प्रकरणसे वैमनस्य उत्पन्न हुआ, इसे दूर कर प्रेम किस प्रकार उत्पन्न करना चाहिये ? तब काशीके राजा अकंपनने कहा कि उन अष्टचंद्रोंको हम आठ कन्याओंको और देंगे। हमारे वंशमें आठ कन्याय और हैं। तब आदिराजाने कहा कि ठीक हुआ। अब कोई बात नहीं रहो । उसी समय अष्ट चंद्रको बुलाकर जयकुमारके साथ प्रेमसम्मेलन कराया । उद्दडमति व सन्मतिको भी योग्यरोतिसे संतुष्ट कर अर्ककीतिको तरफ जाने के लिए वहसि सब निकले।
हाधीसे नीचे उतरकर सबने अर्कोतिको नमस्कार किया । जयकुमार को भी साथमें आये हुए देखकर अर्ककोति समझ गये कि कन्याको ये लोग नहीं ला सके । कन्याको ये लोग लाये होते तो जयकुमार लज्जासे यहाँपर कभी नहीं आता। यह विचार करते हए अर्ककीतिने प्रश्न किया कि बोलो! आप लोगोंके कार्य का क्या हुआ ? सब लोग मौनसे खड़े थे, आदिराजने दुष्टोंकी दुष्टताको छिपाते हुए उत्तर दिया कि भाई ! इन लोगोंके जानेके पहिले हो उस कन्याने समस्त बांधवोंकी अनुमतिसे जय. कुमारके गले में माला डाल दी है और उसो हर्षको सूचित करनेके लिए अनेक गाजेबाजेके शब्द हुए थे। क्योंकि कल उसने माला नहीं डाली थी। दूसरी बात, ये सब एक विषयपर प्रार्थना करनेके लिए आये हैं। उदंडमति और सन्मतिकी ओर इशारा करते हुए कहा कि कहो क्या बात है।
मंत्रियोंने कहा कि स्वागिन् ! राजा अक्रपनको एक कन्या अत्यन्त सुन्दरी है, उसका विवाह आपके साथ करनेका प्रेम अकंपनने बताया है। इसके लिए आपकी सम्मति चाहिये ।
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