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________________ भरतेश वैभव समान है। उसे कौन ले सकते हैं। मंडलेश्वर उस प्रकार लेने के लिए. तैयार हुए तो क्या वह उचित हो सकता है। यह भी जाने दो, तुम व तुम्हारे भाइयोंने जो सेश की है वह क्या थोड़ी है ? ऐसो अबस्थामें तुम्हारे हृदयको हम दुखा तो क्या हम बुद्धिमान् कहलाने के अधिकारी हैं ? हम सब तो अपने पिताजोके पास आराम से खेलकूदमें लगे रहे । तुम लोगोंने जाकर पृथ्वीको वशमें कर लिया । यह क्या कम महत्वका विषय है ? ऐसो अवस्थामें यदि तुम्हारा पालन हमने नहीं किया तो हमारे हृदयमें तुम्हारी सेवाओंकी स्मृति नहीं करनी चाहिये जयकुमार ! उसे भी जाने दो । आज इस नगरमें राजा अकंपनने हम लोगोंका कितना आदर सत्कार किया ? कितनी उत्कटक्ति उसके हृदय में हमारे प्रति है। ऐसी अवस्थामें उसकी पुत्रोके विवाहमें विघ्न उपस्थित करें तो हम लोगोंको कोई भला कह सकता है ? हम लोग विघ्नसंतोषी हुए । विशेष क्या ? यदि ऐसे अन्यायके लिए हम सहमत हुए हों तो हमें पिताजीके चरणोंको शपथ है, यह हम लोगोंसे कभी नहीं हो सकता है। परन्तु इन लोगोंने हमको फंसाया, उनको क्या दण्ड मिलना चाहिये, इसका विचार मैं नहीं कर सकता, क्योंकि मैं राजा नहीं हैं। चलो, यवराजके पास चलो, वहाँपर सब विचार करेंगे । अब अपनो विताको छाड़ो, तुम्हें मेरी शपथ है । ___ जयकुमारने कहा कि मेरी चिता दूर हो गई। साथ में अपने भाई व मामाके साथ पुनः नमस्कार किया। आदिराजने साक्षात् भरतेशके समान हो उस समय जयकुमारको वस्त्र, माभूषण रथरत्नादि भेंट किये। पुनः कुछ विचार करके आदिराजने सबको वहाँसे जानके लिए कहा कर सिर्फ सन्मति मंत्रो, अकंपन, जयकुमार व उसके भाइयों को अपने पास बलाया व एकांतमें कहने लगे कि जयकुमार ! सुनो, किसोके जीवनका नाश करना उचित है या किसीको बचाना अच्छा है ? उत्तरमें उन लोगों ने कहा कि किसीका जीवन बिगड़ता हो उसे संरक्षण करना सज्जनोंका धर्म है। तब आदिराजने कहा कि आखिर तक इस बचनका पालन करता चाहिये । तब उन लोगोंने उसे स्वीकार किया। __ आदिराजने पुनः कहा कि अष्टचंद्र व मंत्रोको इस करतूतको पिताजो ने सुना तो वे इनको देशभ्रष्ट किये बिना नहीं छोड़ेंगे । देशभ्रष्ट करनेपर वे नियमसे दीक्षित हो जायेंगे । इसलिये यह कार्य सुम लोगोंसे क्यों होना
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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