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भरतेश वैभव सेनाको लेकर चले। रणभूमिमें भयंकर युद्ध प्रारंभ हुआ। दोनों ओरसे प्रचंड वीरताके साथ युद्ध होने लगा। वह कुछ मामूली युद्ध नहीं था। अपितु रक्तको नदी ही बहाने योग्य युद्ध था । परन्तु पुण्योदयके कारण वहाँपर एक नवीन घटना हुई ।।
पहिले जयकुमारने एक सर्पको मरते समय पंचनमस्कार मन्त्र दिया था, वह धरणेद्रदेव होकर पेदा हुआ था । सो इस प्रचंड युद्धके समय उस देवको अवधिज्ञानसे मालूम होनेके कारण वह आया । ___ "उस दिन मुझे उपकार किया है। इस समय मैं तुम्हारे शत्रुओंका नाश करूंगा।" इस प्रकार उस देवने कहा । जयकुमारने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए। तुम यहाँपर आये, बड़े संतोषकी बात है । परन्तु आगे सबको आनंद हो, ऐसा व्यवहार होत रहिए । परि सयको न नकाशे तो तुम्हारी क्या जरूरत है ? यह काम में भी कर सकता है। मैंने यही विचार किया था कि इन लोगोंको मारकर में स्वयं भी मरूंगा। परन्तु अवधिज्ञानसे जानकर तुम जब आये तब सबका हित होना चाहिए । मेरे स्वामीको सेनाका नाश मैं करूं तो क्या यह उचित हो सकता है ? इसलिए तम अष्ट्रचंद्र व मन्त्रीको बांधकर मुझे दे दो। बस ! और कुछ नहीं चाहिए। ___ बस ! यह क्या बड़ी बात है। मैं अभी उनको बाँधकर लाता हूँ 1 इस प्रकार कहकर वह नागराज यहाँसे गया व थोड़ी देरमें अष्टचंद्र व उइंडमति मंत्रीको नागपाशमें बांधकर आकाश मार्गसे ले आ रहा था। इतनेमें दो हजार गणबद्धदेवोंने देख लिया ब वे उस नागराजका पोछा करते हुए व गर्जना करते हुए वे जिस जोशकै साथ आ रहे ये उसे देखकर वह नागराज धबरा गया। जब उन लोगोंने आकर नागराजको घेर लिया तो नागराजने उन अष्टचन्द्र व दुष्टमंत्रीको नीचे छोड़ दिया। गणबद्ध देवोंने पड़ते हुए उनको बनाया । उनको बंधनसे मुक्त किया ।
इस प्रकार इस अवसरपर जो हल्ला हुआ उसे सुनकर अर्ककोतिको संदेह हुआ कि कहीं युद्ध तो नहीं हुआ है ? आदिराज उसी समय दुंदुभिघाष नामक हाथोपर चढ़े व भाईसे कहने लगे कि मैं अभी देख कर आता हूँ । एक हजार गणबद्ध देवोंको अपने भाई अर्ककालिके पास छोड़कर, एक हजार गणबद्धोंको अपने साथ लेकर आदिराज उस रणभूमिमें प्रविष्ट हुए । सर्व सेनाकी दृष्टि आदिराजकी ओर लगी थी, आदिराजकी तरफको सेनाने उसे नमस्कार किया। आदिराजने प्रश्न किया कि इस नगरको