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________________ भरतेश वैभव घेरनेका क्या कारण है ? इस प्रकार युद्ध करके अनेक जीवोंकी हत्या कर कन्या लानेके लिए तुम लोगोंको किसने कहा था ? इतने में सन्मति मंत्री आगे आया व कहने लगा कि स्वामिन् ! ये सब सूठे हैं। सुलोचनाने सचमुचमें मेघराजके गलेमें माला डालो है। परन्तु आप लोगोंके सामने झूठ बोलकर इन्होंने फंसाया ! मैंने उनको उसी समय ऐसे कृत्यसे रोका था। परन्तु उन लोगोंने कहा कि जब युवराजके लिए हम कन्याका संधान कह रहे हैं तुम क्यों रोक रहे हो। इसलिए मैं सबके बीचमें बुरा क्यों कहलाऊँ, इस विचारसे चुप रहा । कलसे इनके कृत्यको मौनसे देख रहा हूँ । कुमार ! माप ही विचार करो, अपनी स्त्रीको फोन छोड़ सकते हैं । जयकुमारने युद्धकी तैयारी को । अष्टचंद्र व मंत्रीको नागराजने आकर नागपाशसे बांध लिया। वह जिस समय ले जा रहा था, मणबद देवनि बाकर छह लिया। मनकी सर्व हालज आप जानते ___ इस प्रकार कहकर सम्मति चुप रहा। आदिराज मनमें सोचने लगे कि अर्हन ! इन लोगोंने बहुत बुरा काम किया। सन्मति मंत्रीको बुलाकर आदिराजने कहा कि जाओ, जयकुमारको बुला लाओ। तत्क्षण आकर जयकुमारने आदिराजका दर्शन किया ! बड़ी नम्रताके साथ साष्टांग नमस्कार करते हुए जयकुमारने प्रार्थना को कि राजकुमार ! मैं स्वामिद्रोही है । मुझ सरीखे पापीको याद क्यों किया? विजय, जयंत, अकंपक वगैरह सभी वहाँपर आदिराजको नमस्कार करते हुए जमीनपर पड़े हैं। जयकुमारकी आँखोंमें अश्रुधारा बह रही है। तब आदिराजने सबको उठने के लिए कहा। तब सब उठ खड़े हुए। पूनः जयकुमार कहने लगा कि स्वामिन् ! जब आपकी सेवाने हम लोगोंको चारों तरफसे घेर लिया तो उसका प्रतिकार करना मेरा कर्तव्य था। मचमुच में इसकी गणना स्वामिद्रोहमें नहीं होनी चाहिये । राजन् ! आए अभिमानके संरक्षणके लिए लोकशासन करते हैं। यदि अपने सेवककै अभिमानको आपही अपने हापसे छीननेका प्रयत्न करें तो फिर उसके संरक्षण करनेवाले कौन हैं ? जयकुमार अत्यन्त दुःखके साथ कहने लगा | पुनः "दूसरे सेवकका अपमान न करें तो इसकी पूर्ण खबरदारी स्वामो लेते हैं। यदि वहो स्वामी सेवककी स्त्रीकी अभिलाषा करें तो उस हालत में उस सेवककी क्या गति होगी। गुरू समझकर नमस्कार करनेके लिए एक स्त्री जाए व गुरु ही उसपर मोहित हो तो उस स्त्रीको क्या हालत होगी? क्या उस हालत में धर्म रह सकता है ? राजकुमार ! विचार करो, सेदकको इमत पर यदि
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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