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भरतेश वैभव
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arret माला डालो | इस प्रकार उस जयकुमारकी प्रशंसा सुनते ही सुलोचनाने उसके गले में माला डाल दी। सब दासियोंने उस समय जयजयकार किया ।
माला गले में पड़ते हो सब राजाओंके पेट में शूल पैदा हुआ | युद्धके स्थानसे जैसे भाग खड़े होते हों उस प्रकार चारों तरफ भागने लगे ।
जयकुमार व सुलोचना हाथीपर चढ़कर महलकी ओर रवाना हुए। अपन राजाने उनका यथेष्ट सत्कार कर महल में प्रवेश कराया । वे उधर आनन्दसे थे ।
इधर स्वयंवर के लिए आये हुए राजा लोग किसी सट्टेमें हारे हुएके समान, धन लुटने के समान, विशेष क्या ? माँ-बाप मर गये हों उस प्रकार दुःख करने लगे हैं। एक दूसरेके मुखको देखकर लज्जित हो रहे हैं। झेंपकर इधर-उधर जाते हैं। एक स्त्रीके लिए सबको कष्ट हुआ, इस चातका कष्ट सबके हृदयमें हो रहा है ।
शुभचन्द्र आदि अष्टचन्द्र भी बहुत दुःख होकर एक जगह बैठे हुए हैं । वहाँपर उद्दण्डमति पहुँचकर कहने लगा कि क्यों जी ! आप लोग क्षत्रिय हैं न? आप लोगों को हीन दृष्टिसे देखकर सुलोचनाने उसे माला डाल दो। आप लोग चुपचाप सरक गए ? क्या यह स्वाभिमानियोंका धर्म है ? आप लोगोंको भी उसकी जरूरत नहीं, उस जयकुमार को भी न मिले, सब मिलकर युवराज अर्ककीर्तिको उस कन्याको दिला दें। तब सब लोगोंने उस मोर कान लगाया ।
हाथी, घोड़ा, स्त्री आदियोंमें उत्तम पदार्थ हमारे स्वामियों को मिलने चाहिये। इस सौन्दर्यकी स्त्री क्या इस सेवकके लिए योग्य है ? क्या यह मार्ग है ? आप लोग विचार तो करो ।
तब सब लोगोंने उसकी बातका समर्थन करते हुए कहा कि उद्दण्डमति ! शाबास! तुम ठीक कहते हो ! यह दुराग्रह नहीं है, सत्य है ।
सने उसको बातको स्वीकृति दी । अष्टचन्द्र भी सहमत हुए । ठोक बात है। लोकमें कर हृदयवालोंसे क्या अनर्थ नहीं हुआ करते हैं । उद्दण्डमतिने जिस समय गंभीरहन वाक्योंसे लोगों को बहकाया तब सब लोग उस अनीति मार्गके लिए तैयार हुए।
सन्मति मन्त्रोने कहा कि उद्दण्डमति ! ऐसा करना उचित नहीं है, बहुत अनर्थ होगा। उद्दण्ड मतिने कहा कि तुम क्या जानते हो ? चुप रहो ।