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भरतेश वैभव
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लोग रास्ता साफ करें इस प्रकारको घोषणा परिवारमारियां कर रही हैं। छत्र, चामर, पताका इत्यादि वैभव उसके साथ है । साथमें गायन चल रहा है, अथवा यों मालूम हो रहा है कि कामदेवकी वीरश्री ही आ रही है।
पालकीके पर्दे से हटकर वह खड़ी हो गई तो वह कामदेवके म्यानसे निकली हुए तलवारके समान मालूम हो रही थी। नहीं-नहीं, यह ठीक नहीं बना, मेघमंडल से बाहर आये हुए चन्द्रमाके समान मालूम हो रही थी। अथवा विद्युन्मालाके समान मालूम हो रही थी । स्वयंवरमंडप में पहुँचकर एक दफे समस्त खेचर भूचर राजाओंको उसने देखा । उस समय उसके लोचन (नेत्र) बहुत सुन्दर मालूम हो रहे थे । सचमुच में उसका सुलोचना यह नाम उस समय सार्थक हुआ।
उसकी दृष्टि पड़ते ही समस्त राजाओंको रोमांच हुआ जिस प्रकार कि दक्षिण दिशा की वायुसे उद्यानके वृक्ष पल्लवित होते हैं । चन्द्रमाकी कान्तिको जिस प्रकार चकोर दृष्टिसे देखता है उसी प्रकार इस सुन्दरीके रूपके प्रति मोहित होकर वे राजा देखने लगे हैं। सुलोचनाके मुखमें, कण्ठ में, स्तनों में, बाहुओंमें, कटिप्रदेशमें उन राजाओंके लोचन प्रवेश कर रहे हैं, प्रविष्ट होने के बाद वहाँसे वे वापिस नहीं आ रहे हैं यह भावच की बास है । बहुत ही लीन दृष्टिसे वे लोग देख रहे हैं। मिलनेका सुख उनको आगे मिलेगा, परन्तु देखनेका सुख आज सबको मिला इस हर्षसे सब लोग प्रसन्न हो रहे हैं। एक स्त्रीके लिए सब लोग आसक्त हो रहे हैं, यह स्वयंवर एक भांडोंका खेल है ।
चित्तमें रागभावसे सबको उस सुलोचनाने देखा एवं सबने उसके प्रति आसक्त दृष्टिसे देखा है, यही तो भावरति है । स्वयंवर एक परिहासास्पद विषय है। आवे मुखको खोलकर आंखों को फाड़-फाड़कर भ्रान्त होकर उसकी ओर सब लोग देख रहे थे। भरतचक्रवर्तीके पुत्र उस स्वयंवरमण्डपमें क्यों नहीं आये, यही तो कारण है। ये विवेकी सम्राट्के सुपुत्र है।
सुलोचना देवी अपने हाथ में माला लेकर दाहिने और बाँयें तरफ बैठे हुए राजाओं को देखती हुई जा रही है । साथमें महेन्द्रका नामकी चतुर सखी है यह सब राजाओंका परिचय देती हुई जा रहो थो ।
यह नेपालके राजा हैं, देखो । सुलोचना आगे बढ़ गई, उस राजाका मुख एकदम फीका पड़ गया, चालमें सके हुए नये बंदरके समान उसकी हालत हुई ।
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