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भरतेश वैभव
४३३ समय मेरी सेवाओं को ग्रहण कीजिये । इस प्रकार कहते हुए भरतेश्वरने अपनी स्त्रियोंकी ओर देखा तो ये समझ गईं। सभी स्त्रियोंने सासुके चरणोंपर मस्तक रखकर प्रार्थना की कि अभी दीक्षाके लिए नहीं जाना चाहिये । सुनंदादेवीने कहा कि बेटा ! क्या तुम्हारी बातको ही मैं मान नहीं सकती ? इशारेसे स्त्रियोंसे नमस्कार करानेकी क्या जरू‘रत है ? इस प्रकार कहकर सब स्त्रियोंको उठनेके लिए कहा ।
भरतेश्वरने कहा कि माताजी ! आप छोटी बड़ी बहिन एकसाथ रहकर हमें व लाख स्त्रियोंको सेवा करनेका अवसर देवें। बाहुबलिकी सर्व संपत्ति उसके पुत्रोंको रहे और उसकी देखरेखके लिए योग्य मनुष्यों को नियत कर अपन सब अयोध्यापुरमें जावें । सुनंदादेवीने उसे स्वीकार कर लिया। प्रणयचंद्र मन्त्री व गुणवसंतक सेनापतिको बुलाकर मर्व विषय समझा दिया गया। परन्तु उन लोगोंने निवेदन किया कि यह बड़े सन्तोषकी बात है। परन्तु हम दीक्षाके लिये जायेंगे। उसके लिए अनुमति मिलनी चाहिये । ___ भरतेश्वरने कहा कि बाहुबलिको सेवा आप लोगांने इतने दिन की । मैंने आप लोगोंका क्या बिगाड़ किया है ? इसलिए इन बच्चोंके पड़नेनक ठहरना चाहिये । इस दुःखके समय जाना नहीं चाहिये । आप लोग पोदनपुरमें प्रजापरिवारों के सुखकी कामना करते हुए रहें। मंत्री व सेनापति समझ गए। उन्होंने कहा कि राजन् ! राजाके बिना हम लोग वहाँपर नहीं रह सकते हैं। इसलिए बाहुबलिके बड़े पुत्रको राज्याभिषेक कर हमारे साथ भेज दीजिये । हम सब व्यवस्था करेंगे। बुद्धिसागर मंत्रीने भी सम्मति दे दी। उसी समय महाबलकुमारको बुलाकर पौदनपुरका पट्टाभिषेक किया गया और मंत्री, सेनापतिका योग्य सत्कार कर भरतेश्वर महलमें चले गए । सुनंदादेवीसे सर्व वृत्तान्त कहा गया, उनको भी संतोष हुआ । तीनों पुत्रोंसे कहा कि वेटा! तुम लोगोंके संरक्षणके लिए माताजी तुम्हारे साथ हैं। तथापि मैं भी कभी-कभी हितचिन्तकोंको भेजकर तुम्हारे विषयको जानता रहूँगा । इस प्रकार बहुत प्रेमसे कहकर, विश्वासपात्र सेवकोंको एवं माताकी दासियोंको उचित वस्त्ररत्नादिक वस्तुओंको प्रदान कर एवं वाहुबलिके पुत्र मित्रोंको योग्य सन्मान कर स्वयं अयोध्याकी ओर रवाना हुए।
अयोध्या समीप आते हुए देखकर सेनाको बड़ा हर्ष हो रहा है।