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________________ ४३४ भरतेश वैभव ८-१० कोस दुरसे जिन मंदिरका महल दिखने लंग है । नगरके समीप आनेपर भरतेश्वर पट्टगजपर आरूढ़ हुए। और उनके सर्व सुपुत्र भी छोटे-छोटे हाथियोंपर आरूढ़ हाए करोड़ों प्रकारके वाजे, छत्र, चामर आदि वैभवोंसे संयुक्त होकर भरतेश्वर आ रहे हैं। अगोध्या नगरकी समस्त प्रजाओंको साथमें लेकर माकाल नामक व्यन्तर भरतेश्वरके स्वागतके लिये आया व विनयसे नमस्कार कर कहने लगा कि स्वामिन् ! इस नगरको छोड़कर आपको साठ हजार वर्ष बीत गये। तबसे हम और पुरवासी आपके दर्शनके लिए जो तपश्चर्या कर रहे हैं, उसका फल आज हमें मिल मया । भरतेश्वर मुसकराये । पुनः महाकाल कहने लगा कि स्वामिन् ! आपके साथ अनेक देशोंमें भ्रमण करनेवाले इन सेनाजनोंको कोई प्रकार कण्ट नहीं हुआ। परंतु आपके वियोगमें रहनेवाले हम लोगोंको बड़ा कष्ट हुआ । भरतेश्वर उसकी तरफ हँसते हुए देख रहे थे । माकाल व प्रजाओंसे उपचार वचनोंको बोलकर सम्राट अयोध्या नगरके परकोटेके अन्दर प्रवेश कर गये। अन्तःपुर तो महलकी ओर चला गया । भरतेश्वर अपने पुत्रोंको साथमें लेकर राजमार्गमें होते हुए जिनमंदिरकी ओर आ पुरजन, पुरस्त्रियाँ जुलुसको बड़े उत्साहके साथ देख रही हैं। जिस प्रकार एक गरीबको निधिके मिलनेपर हर्ष होता है उस प्रकार सबको हर्ष हो रहा था। वे आपसमें बातचीत कर रहे थे कि जबसे राजा यहाँसे गये हैं, तबसे हम लोगोंको मालूम हो रहा था कि हमारी एक बड़ी भारी चीज खो गई है। अब ये आ गये हैं। हम लोगोंको बुलाकर बोलने की जरूरत नहीं। संपत्तिके देनेकी जरूरत नहीं हमारे नगरमें रहे तो हुआ। इससे अधिक हम कुछ भी नहीं चाहते हैं। कोई बोलते हैं कि इसका पूण्य कितना तेज है। देखने मात्रसे वस्त्राभूषणोंको पहननेके समान विशेष क्या, भोजन करने के समान सुख मालूम होता है । पापका भी खंडन होना है। पुरजनोंके होते हुए भी जब यह राजा नहीं था नगर सूना-सुना मालम हो रहा था। यह परनारी सहोदरके आनेपर आज नगरमें नई शोभा आगई है। कांतिरहित कमल, पतिरहित सति, गुरुरहित तीर्थ एवं राजासे विरहित राज्य कभी शोभाको प्राप्त नहीं हो सकते हैं। उस दिन जाते समय हमारे राजा एक हाथीपर चढ़कर गए थे, अब आते समय हजारों
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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